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________________ EUGASACASACANARAKALABANANARABASASA • दैनिक नियम भोजन षट्स लेप जल, पुष्प अरु गान । ब्रह्मचर्य नृत्यादि अरु वस्त्राभूषण न्हान ॥ १५ ॥ | अर्थ - भोगोपभोग परिमाण व्रत में नित्य ही इस प्रकार का नियम करना चाहिये, आज के दिन एक ही बार भोजन करूँगा या दो बार या तीन बार भोजन करने का परिमाण करना अथवा आज के दिन में षट् रसों में से एक या दो तीन चार रसों का सेवन करूंगा अर्थात् आज में चन्दन, केशर, कपूर आदि का लेप करूँगा या नहीं। मैं आज कितनी बार पानी पीऊँगा । रागवर्द्धक स्त्रियों के गीत आदि नहीं गाना । मैं कितने समय के लिए ब्रह्मचर्य व्रत धारण करूँगा तथा नृत्य देखने का भी नियम करना चाहिये। फूलों की माला आदि धारण करने का नियम करना चाहिये । पान खाने का भी नियम करना चाहिये। वस्त्राभूषण का नियम करना चाहिए आज में इतने वस्त्र आभूषण पहनूंगा अधिक नहीं। मैं आज एक बार या दो बार स्नान करूँगा या स्नान नहीं करूंगा इत्यादि नियम करना चाहिये । इस प्रकार अपने योग्य भोग उपभोग का भी नित्य नियम करने वाले के भोजन पानी करते हुए भी निरन्तर संवर होता है ॥ १५ ॥ १४. ताम्बूल गंध लेपन मंजन भोजन पुरोगमो भोग: 1 उपभोगो 'भूषा स्त्री शयनासन वस्त्र बाह्यद्याः ॥ BANANAGARA अर्थ- पान-बीड़ा, गंध इत्रादि, लेपन - उबटनादि, मंजन दांतुन, भोजन आदि पदार्थ भोग कहलाते हैं और स्त्री, आभूषण, पोषाक, शैया, आसन, वस्त्र, वाहनादि उपभोग कहे जाते हैं ॥ १४ ॥ १५. भोजन षट्रसे पाने, कुंकुमादि विलेपने । पुष्प, ताम्बूल गीतेषु नृत्यादौ ब्रह्मचर्यके । स्नान भूषण वस्त्रादौ वाहने शयनासने । - सचित्त वस्तु संख्यादौ प्रमाणं भज प्रत्यहं ॥ ... CASAGACABABABABASANAGARACACAGASABAEACAYASAEREZURSA धर्मानन्द श्रावकाधार २६०
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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