SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ A8AANABARREZKABASARASAGANANACASANARSALAREA करके ध्यान, पूजन, स्वाध्याय धर्मचर्या आदि धर्म क्रियाओं में सोलह पहर व्यतीत करता है वही प्रोषधोपवास करने वाला श्रावक पूर्ण अहिंसा व्रत के फल को प्राप्त करता है, वही भाग्यशाली है ।।११ ॥ • भोगोपभोगपरिमाण का लक्षण भोग और उपभोग से राग घरावन हेत। इन्द्रिय विषय का त्यागी नत व्रत यम नियम ग्रहेत ॥१२॥ अर्थ - इन्द्रिय विषय का त्यागी गृहस्थ प्रतिदिन राग भाव को घटाने के लिये भोग और उपभोग की वस्तुओं का यम और नियम पूर्वक त्याग करता है, उसे भोगोपभोग परिमाण शिक्षाव्रत कहते हैं१२ ।। ११. इति यः षोडशयामान् गमयति परिमुक्त सकल सावद्यः । ___ तस्य तदानीं नियतं पूर्णमहिंसा व्रतं भवति । अर्थ - उपर्युक्त विधि से विषय-कषाय-आरम्भादि का त्याग कर जो सोलह प्रहर का उपवास करता है, उसके उस काल में अहिंसाव्रत पूर्ण रूप से महाव्रत सदृश पूर्ण होता है। ऐसा ज्ञात कर विधिवत् प्रोषधोपवास करना चाहिए ॥ ११ ॥ १२. अक्षार्थानां परिसंख्यानं भोगोपभोग परिमाणम् । ____ अर्थवतामप्यवधौ, रामरतीनां तनूकृतये ॥ ८२ ॥ र. क. श्रा. अर्थ - दिव्रत में किये गये प्रमाण अर्थात् अवधि में भी प्रयोजनीय इन्द्रिय विषयो का भी प्रमाण करें, रागभाव को न्यून करना भोगोपभोग परिमाण नामका व्रत है। भोगोपभोग त्याग व्रत में हिंसा क्यों ? २. भोगोपभोग मूला विरताविरतस्य नान्यतो हिंसा । ____ अधिगम्य वस्तु तत्त्वं स्व शक्तिमपि तावपि त्याज्यो ।। अर्थ - भोगोपभोग त्याग व्रत का धारी संयतासंयत नामक पंचम गुणस्थान का धारी होता है। इस गुणस्थान वर्ती त्रस हिंसा का त्यागी होता है इसलिए संयमी होता है, किन्तु स्थावर जीवों की हिंसा का त्याग करने में असमर्थ होता है अत: इस अपेक्षा... AQUARAKARAKASSAU VASARANAELEZCANARARE AUS घनिन्छ प्रायकापार-~२५८ 40 mL
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy