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SARASAASAASANROANA RENESAURUSANAGASABA
• प्रोषधोपवास में कर्तव्य
प्रोषध दिन एकान्त थल जाप त्रिकाल कराय।
आलस निद्रा जीतकर, जिनपूजन स्वाध्याय ।। १०॥ अर्थ - उपवास करने वाला श्रावक किसी एकान्त स्थान में जाकर तीनों कालों में समता भाव रखता हुआ जाप करें तथा आलस और निद्रा को जीतकर पूरे दिन चैत्यालय या मंदिर में जाकर जिन पूजन और स्वाध्याय करें। अर्थात् धर्मामृत का पान स्वयं करें और दूसरों को करावें इस प्रकार धर्मध्यान पूर्वक अपना समय बितावें ॥१०॥ • इसका फल
इस विधि वर सोलह पहर, पाप क्रिया सब त्याग ।
अहिंसा व्रत का पूर्ण फल, पावत तव बड़भाग ॥११॥
अर्थ- जैसी विधि ऊपर बताई गई है, उसी के अनुसार जो श्रावक समस्त पाप और आरंभादि क्रियाओं का त्याग करके तथा तीनों योगों को वश में
१०. ताम्बूल गंध माल्या स्नानाम्यंगादि सर्व संस्कारं ।
ब्रह्मव्रतगत चित्तैः स्थातव्यमुपोषितैस्त्यक्ताः॥ अर्थ - उपवास के दिन पान बीड़ा, गंध-उबटन, माला-फूलमाला, अभ्यंगस्नान अर्थात् तैलादि मर्दन आदि सर्व श्रृंगारों का त्याग करें, शुद्ध मन से ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर स्थिर चित्त रहना चाहिए। तथा -
धर्मध्यानासक्तो वासरमंत बाह्य विहित सांध्य विधिं ।
शुचि संस्तरे त्रियासंगमयेत् स्वाध्याय जितनिद्रः॥ अर्थ - इसी प्रकार उपवास धारी धर्मध्यान में लीन होकर दिन को यापन कर अन्त में संध्या वन्दन विधि करके, पवित्र आसन पर आसीन हो बैठकर तीन प्रहर रात्रि को स्वाध्याय ध्यानादि से बिता अंतिम प्रहर में स्वल्प निद्रा ले। निद्रा को विजय करे।। १०॥ *NARAUAKARARANASASALARARAAAAA A ALALALAR
धर्माजन श्रावकाचार-२५७