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________________ ENEKLAUNSABABABABAGAGAGAGAGZKAGAYAENGAENYÁREASCUASH • षष्ठाध्याय का सारांश अणुव्रत रक्षक भेदत्रय गुणव्रत के पहचान । महावीर गुरु भक्त ने लिखे शास्त्र परमान ॥ १५ ॥ अर्थ - पाँचों अणुव्रतों की हर प्रकार से रक्षा करना ही इनका स्वभाव है । इसलिए इनका नाम शीलव्रत है। जिस समय आत्मा दिशा आदि की मर्यादा कर लेता है। बिना प्रयोजन हिंसा के कारणों में नहीं प्रवृत्त होता है। सामायिक आदि द्वारा मन को पवित्र बना लेता है । भोग उपभोगादिकों का परिणाम कर तृष्णा को घटा डालता है । उस समय प्रवृत्ति "सुतरा " ऐसी बन जाती है कि हिंसा झूठ यदि पाप उस आत्मा से बनता ही नहीं । प्रत्युत अहिंसा सत्य आदि व्रतों में हटता हो जाती है। इसलिए व्रतों का पालन करने वालों को शीलों का पालन आवश्यक है। ऐसा महावीर भगवान् के भक्त आचार्य परमेष्ठी महावीर कीर्ति जी महाराज ने लिखा है ।। १५ ॥ इति षष्ठाध्याय .. अर्थ - उपर्युक्त पंच प्रकार के अनर्थदण्डों तथा अन्य भी इसी प्रकार व्यर्थ निष्प्रयोजक कार्यों को अवगत कर जो उनका त्याग करता है उसका अहिंसाव्रत निरंतर जयवंत रहता है । अर्थात् अनर्थदण्ड त्यागी का अहिंसा परम धर्म सतत् निर्दोष, निरतिचार पालन होता है ॥ १४ ॥ १५. " अणुव्रतोऽगारी ॥" त. सू. २० अ. ७ अर्थ - पंच अणुव्रतों का पालन करने वाला आगारी, गृहस्थ कहलाता है ॥ १५ ॥ KARAYAGAYAYASANAKANACAKÁCHEAUMEABABAEZKANAGANAYASA धर्मानन्द श्रावकाचार २५०
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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