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________________ BARRERSasasanasasasaMERICSursaanKaamREATREAScreesa २. वाणिज्य-स्वल्प मूल्य में कोई वस्तु खरीदी जाय और अधिक मूल्य में बेच दी जाये । उसे वाणिज्य व्यवसाय कहते हैं। ३. लेखन कला- जो स्याही के द्वारा आजीविका की जाती है उसे लेखन वाणिज्य कहते हैं जैसे - मुनीमी करना, दफ्तरों में क्लर्की करना। ४. खेती- जहाँ पर खेती के द्वारा आजीविका की जाती है, उसे खेती व्यवसाय कहते हैं। ५. नौकरी- किसी का वेतन लेकर टहल-चाकरी, सेवा आदि करना नौकरी व्यवसाय है। ६. शिल्पकला- नाना तरह की कारीगरी से आजीविका चलाना शिल्पवृत्ति है । जैसे - सुनार, लुहार आदि करते हैं॥ ८॥ • आजीविका के नाम विद्या वाणिज्य कृषिमषी, सेवा शिल्प सुजान। कर्मभूमि आदि में कहे, आदिश्वर भगवान् ॥ ९॥ अर्थ - कर्मभूमि के प्रारम्भ में आदिनाथ भगवान ने विद्या, वाणिज्य, कृषि, मषि, सेवा और शिल्प इन षट् कर्मों का उपदेश दिया था ॥ ९॥ ८. विद्यावाणिज्य मषी कृषि सेवा शिल्प जीविनां पुंसां ! __पापोएदेशदानं कदाचिदपि नैव वक्तव्यम् ॥१४२ ॥ पु. सि. । अर्थ - विद्या, ज्ञान, वाणिज्य, व्यापार, मषी लेखन क्रिया - स्याही, कृषि - खेती, सेवा दासता-नौकरी, सेवा-चाकरी, शिल्प-कला-कौशल, इन छह प्रकार के उद्योगों द्वारा आजीविका करने वाले पुरुषों के लिए पाप रूप उपदेश का दान कभी भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि इसके द्वारा हिंसादि पापार्जन होता है। अपने व्रतों को निर्मल-निर्दोष पालनार्थ आगम विरुद्ध उत्सूत्र और पापवर्द्धक शिक्षा का त्याग करना चाहिए।॥८॥ xamsasuresamARARREARRESTERSTARRIERSATISASARAMANAGERSE धममिन्द श्रावकाचार-२४५
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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