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________________ BarlieraniKarunambinisasurnamainamuslimarna • इनके भेद नाम अद्योपदेशरूदुःश्रुती हिंसादान अपध्यान । प्रमाद चर्या पाँच ये, अनरथ भेद पिछान॥७॥ अर्थ - अशुभोपयोग रूप दण्ड को नहीं धारण करने वाले गणधरादिक देव ने अनर्थदण्ड के पाँच भेद कहे हैं। १. पापोपदेश, २. हिंसादान, ३. अपध्यान, ४. दुःश्रुती, ५. प्रमादचर्या ।। ७ ।। • पापोपदेश छहों कर्म जीवीनि को, अद्य आरंभ उपदेश । देवें जिसमें व्यर्थ ही पावे, निवल कलेश ॥ ८ ॥ अर्थ- बिना प्रयोजन किसी पुरुष को आजीविका के कारण विद्या, वाणिज्य, लेखनकला, खेती, नौकरी और शिल्प इन छह प्रकार के पाप रूप व्यापार का उपदेश देना पापोपदेश अनर्थदण्ड कहलाता है। १. विद्या - जो लोग मंत्र-तंत्र-यंत्रों द्वारा व्यवसाय करते फिरते हैं वे विद्या व्यवसायी है। -. -.- - - - - - - - - - ...अर्थ - दिग्वत की सीमा के अन्दर भी निष्प्रयोजनीय अनावश्यक कार्यों का त्याग करने को गणधराचार्य अनर्थदण्ड व्रत कहते हैं।।६।। ७. पापोपदेश हिंसादानापध्यान दुःश्रुतीः पंच । ____ प्राहु प्रमादचर्यामनर्थदण्डानदण्डधराः॥ अर्थ - अनर्थदण्ड व्रतधारी आचार्य कहते हैं कि अनर्थदण्ड के पाँच भेद हैं - १. पाप का उपदेश देना, २. हिंसा के उपकरणों छुरी, असि आदि का दान देना, ३. अपध्यान मन से पर का अहित चिन्तन करना, ४. कुमार्ग प्रतिपादक ग्रन्थों या बातो का श्रवण करना और ५. प्रमाद से गमनादि क्रियाओं को करना ये पाँच अनर्धदण्ड हैं, हिंसादि पाप वर्द्धक हैं। इनका त्याग करना चाहिए ।।७।। MusasarlRANASERanarseximariteSasasarainineursa धर्मानन्द तिवाधार-२४४
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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