________________
ALAMABALAR ARASARANASANAKAHARAREPERT • पंचम अध्याय का सारांश
अहिंसादि अणुव्रतनि का लिखा जिनोक्त स्वरूप। महावीर जिनभक्त ने, छन्द रचे अनुरूप ॥ ३२ ॥
अर्थ - अहिंसादि अणुव्रत का लक्षण स्वरूप उसका फल इत्यादि जो जिनेन्द्र भगवान ने जैसा स्वरूप बताया है वैसा ही महावीर स्वामी के भक्त ने छन्द के द्वारा सुन्दर रूप से निरूपण किया है। ___ परमाराध्य भगवान महावीर स्वामी के अनुयायो परमागम भक्त परम पूज्य आचार्य परमेष्ठी श्री महावीरकीर्ति जी महाराज द्वारा निरूपण किया गया ॥ ३२॥
इति पंचम अध्याय
३२. गृहस्थो मोक्षमार्गस्थो निर्मोहो नैव मोहवान् ।
अनगारो गृही श्रेयान् निर्मोहो मोहिनो मुनेः ॥ र. श्रा.॥ अर्थ - मोह मिथ्यात्व का पर्यायवाची है। मिथ्यात्व पूर्वक द्रव्यलिंगी मोही साधु की अपेक्षा निर्मोही सम्यग्दृष्टि गृहस्थ उत्तम है। क्योकि बाह्य वेष मात्र से कर्म कालिमा नहीं कटती न संसार भ्रमण ही टलता है। संसार भ्रमण का हेतु मिथ्यात्व मोह है। अतः सम्यक् तप तपना चाहिए ।। ३२॥ SABAYARAN SURAKARĀDĀNAKAKAHRRIVAATASARAN eh
धमनिन्इ श्रावकाचार-२३९