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________________ alla RATANZSARRUFUKUZUSUNUNUATU VASARAKATANA हुआ। शील संसार की सर्वोत्कृष्ट निधि है। यदि शील नष्ट हो गया तो समझ लो कि सर्वस्व ही नष्ट हो गया । इसीलिए कहा है - If Wealth is lost, nothing is lost, if health is lost, something is lost, but if character is lost everything is lost. प्रत्येक श्रावक को शीलव्रत की रक्षा के लिए ब्रह्मचर्याणुव्रत का पालन करना चाहिए इसके बिना “सजातित्व' नामक परमस्थान की रक्षा नहीं हो सकती ॥ १९ ॥ • स्त्री शिक्षा पुत्री अरु त्रिय को गृही, सिखवे धार्मिक कर्म। धर्म अशिक्षित वह त्रिया, नाशे पतिव्रत धर्म ॥२०॥ अर्थ - जो गृहस्थ पुत्रियों और स्त्रियों को लौकिक शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षण नहीं देते हैं वह अशिक्षित स्त्रियाँ पतिव्रता धर्म को नष्ट कर देती है। भावार्थ - माता-पिता को चाहिये कि अपनी संतान को सबसे पहले धार्मिक संस्कार से सुसंस्कृत करें। क्योंकि वर्तमान में बड़ी विकट परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई है । धार्मिक शिक्षण के अभाव के कारण आज लड़कियाँ लव मेरेज, कोर्ट मेरेज, किसी के साथ भाग जाना, आत्म हत्या जैसे घिनौने कार्य कर रही है। इसी के कारण (अर्थात् धार्मिक धर्म शिक्षण के अभाव) से आज १९. न तु परदारान् गच्छति न परान् गमयति च पाप भीतेर्यत् । सा परदार निवृत्तिः स्वदार सन्तोष नामापि ॥ र. श्रा.॥ अर्थ - जो पुरूष व्यभिचार दोष के भय से अपनी विवाहित धर्मपत्नी के अतिरिक्त अन्य परदाराओं को सेवन करता है और न अन्य को उनके सेवन की प्रेरणा देता है वह ब्रह्मचर्याणुव्रत धारी, स्वदार सन्तोष व्रत पालक कहलाता है।॥ १९॥ KUMARREReasangeeMITRAARAKaraaaKaMISUSarcasurikrama धमनिन्द श्रावकाचार -८२२५
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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