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MARCARAGONARABARANAUANANANANANALISARUNATALAK बनाने, नहाने-धोने, वस्तुओं को उठाने रखने, उठने-बैठने, सोने तथा चलनेफिरने में अपरिहार्य रूप से जो जीव का घात होता है उसे आरंभी हिंसा कहते हैं।
३. उद्योगी हिंसा - आजीविका उपार्जन के लिये नौकरी में, खेती में और उद्योग व्यापार में अपरिहार्य से जो जीव हिंसा होती है उसे उद्योगी हिंसा कहते हैं।
४. विरोधी हिंसा - अपने कुटुम्ब परिवार की रक्षा करते हुए, अपने शील, सम्मान की रक्षा करते हुए अथवा धर्म तथा देश के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए किसी आततायी या आक्रमणकारी का सामना करते समय जो हिंसा करनी पड़े वह विरोधी हिंसा है। श्रावक सिर्फ संकल्पी हिंसा का ही त्यागी होता है॥५॥
१३९. संरम्भसमारम्भारम्भैर्योगत्रिक कृतकारितानुमतैः सहकषायैस्तैस्त्रसा संपद्यते हिंसा। त्रित्रित्रि चतुः संख्यैः संरम्भाद्यैः परस्पर गुणितैः। अष्टोत्तरशतभेदा हिंसा सम्पद्यते नित्यं ।। २. आद्यं संरंभ समारंभ आरंभ योग कृत कारितानुमतकषाय विशेषस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः ।। ____ अर्थ - संरम्भ, समारम्भ. आरम्भ, कृत-कारित, अनुमोदना, मन-वचन-काय और क्रोध, मान, माया, लोभ चार कषाय इनका परस्पर गुणा करने पर ३x ३४३४ ४ = १०८ भेद होते हैं। त्रस काय जीवों के घात में ये सभी कारण पड़ते हैं। कार्य में कारण का उपचार करने से हिंसा के भी १०८ प्रकार भेद हो जाते हैं। इसीलिए २. कहा है-आद्यसंरम्भसमारंभारम्भ योग कृतकायकारितानुमत कषाय विशेषस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः।।
संरम्भ - किसी भी कार्य की योजना सोचना, समारम्भ - उसके सम्पादन का साधन जुटाना है। आरम्भ - कार्य करना शुरु कर देना । उसे मन, वचन और काय से करना । कृत - स्वयं करना । कारित - अन्य से करवाना । अनुमनना- कार्य करने में अनुमति देना, समर्थन करना । क्रोध, मान, माया व लोभ वश करना कराना । इन सभी का निमित्त प्रत्येक कार्य में संभवित होता है । हिंसाकर्म में भी ये कारण होते ही हैं अतः हिंसा भी १०८ प्रकार की होती है।। XARRAKARAKAYANARRUCARANASARANASANAKAHARASARANA
धमजिन्द श्राचकाचार-२०९