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________________ SAURSAKASANAETEREASABASABASANACACLEAN: ABASASALA ३. अदीक्षा ब्रह्मचारी जो बिना ब्रह्मचारी का वेष धारण किये ही शास्त्रों का अभ्यास करते हैं, और फिर गृहस्थ धर्म स्वीकार करते हैं उन्हें अदीक्षा ब्रह्मचारी कहते हैं । ४. गूढ़ ब्रह्मचारी जो कुमार अवस्था में ही मुनि होकर शास्त्रों का अभ्यास करते हैं तथा माता-पिता, भाई आदि कुटुम्बियों के आश्रय से अथवा घोर परीषहों के सहन न करने से अथवा राजा की विशेष आज्ञा से या अपन आप ही जो परमेश्वर भगवान् अरहंत देव की दिगम्बर दीक्षा छोड़कर गृहस्थ धर्म स्वीकार करते हैं उन्हें गूढ़ ब्रह्मचारी कहते हैं । - ५. नैष्ठिक ब्रह्मचारी समाधिमरण करते समय शिखा (चोटी) धारण करने से जिसके मस्तक का चिह्न प्रगट हो रहा है, यज्ञोपवीत धारण करने से जिसका उरोलिंग प्रकट हो रहा है, सफेद अथवा लाल रंग के वस्त्र की लंगोटी धारण करने से कमर का चिह्न प्रगट हो रहा है, जो सदा भिक्षावृत्ति से निर्वाह करता है, जो व्रती है, सदा जिनेन्द्र भगवान की पूजादि में तत्पर रहते हैं उन्हें नैष्ठिक ब्रह्मचारी कहते हैं ॥ १ ॥ • पहली प्रतिमा और पाक्षिक में अन्तर पाक्षिक समकित दोष युतं, अणुव्रत सातिचार | पहली प्रतिमाधारी दोउ, धारे निर अतिचार ॥ २ ॥ १. देशयमघ्न कषाय क्षयोपशम तारतम्य वशतः स्यात् । दार्शनिकाकादश दशावशो नैष्ठिकाः सुलेश्यतराः भवन्ति ॥ अर्थ- देश चारित्र और सकल संयम का घात करने वाली, क्रमशः तारतम्य रूप से अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान कषायों का क्षयोपशम है। अर्थात् द्वितीयकषाय चतुष्क देशसंयम और तृतीय चौकड़ी सकल संयम का घात करती है ऐसा समझनी चाहिए ॥ १ ॥ LASTEARTEANUTSALACASACALLESCARACASAYACACAGAYAEREKER धर्मानन्द श्रायकाचार २०१
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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