________________
CARACASMEN
उदम्बर फल में हिंसा
MASALASANASARANASAER
उदुम्बर फल को तोड़के, सूक्ष्म दृष्टि से देख |
उसमें उड़ते स दिखे, भक्षण योग्य न गेय ॥ १६ ॥
-
अर्थ - उदम्बर फलों में त्रस जीव रहते हैं, ध्यान से देखने पर उड़ते हुए नजर आते हैं अतः पाँच उदम्बर फल श्रावक के लिये कदापि सेवनीय नहीं है ।
なぜな
कोई कहे कि सूख जाने पर तो उनमें जीवराशि नहीं रहती है उसे तो खा सकते हैं ? तो इसके समाधान में पुरूषार्थ सिद्धि उपाय ग्रन्थ में आचार्य लिखते हैं कि उदम्बर फल त्रस जीवों से रहित हो जावे तो भी उनके भक्षण करने वाले के विशेष रागादि रूप हिंसा होती है । वसुनन्दी श्रावकाचार के अनुसार “णिच्वं तस संसिद्धाई ताई परिवज्जियव्वाई" नित्य त्रस जीवों से संसक्त होने से सदा त्यागने योग्य हैं।
और भी
उदम्बर फल के त्याग होने पर उनके अतिचारों का भी प्रयत्न पूर्वक त्याग करना चाहिए। सागार धर्मामृत ग्रन्थ में ऐसा कहा है- उदम्बर त्याग व्रत को पालने वाला श्रावक सम्पूर्ण अज्ञात फलों को तथा बिना चीरे हुए भटा वगैरह को और उसी तरह बिना चीरी सेम की फली न खावें ।
--
-
अभिप्राय - लाठी संहिता ग्रन्थ के अनुसार यहाँ पर ऊदम्बर शब्द का
-
.. अर्थ - सूर्यास्त होने के बाद जल पीना - रक्त पीने के समान दोष युक्त है। अन्न खाना मांस सेवन के समान है ऐसा मार्कण्डेय महर्षि ने अपने पुराण में बताया है। जो णिसि भुत्ति वज्जदि सो उपवास करेदि । छम्मासं संचच्छरस्स मज्झे आरंभभु यदि ॥
अर्थ - जो रात्रि में चारों प्रकार के आहार जल का त्याग करता है उसे तत्काल सम्बन्धी उपवास होता है अर्थात् एक वर्ष में ६ महीने के उपवास रूप पुरूषार्थ (तप)
उसके होता है ॥ १५ ॥
SAEREASTRABAGAZABALALAYAGAGAGAGAGAGARANTERETRAGEREA धर्मानन्द श्रावकाचार १७१