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RASAKATARZAVAROKakata AX NATURIKUT aka • निशि भोजन में हिंसा -
निशि को छोटे जीव बहु, उड़त अंधेरी पाय । मिलकर भोजन संग में, रोग करत दुःखदाय ॥ १४ ॥
अर्थ - रात्रि में सूक्ष्म जीवों से विशेषकर पूरा वायुमण्डल व्याप्त हो जाता है। रात्रि में जो भोजन करते हैं उनकी भोज्य सामग्री में गिरकर वे मरते रहते हैं, इन्द्रिय गोचर नहीं होने से उनका उपहार भी नहीं होता और दूषित भोजन मृत जीवों से मिश्रित भोजन ही उनके पेट में पहुँच जाता है। रोगादि की वृद्धिकर वह घोर कष्ट पहुंचाता है। अतः रात्रिभोजन नहीं करना चाहिए।
कोई कहे कि अन्धेरै में भोजन बनाने से तो बड़े-बड़े जीवों का भी घात हो सकता है पर दीपकादि के प्रकाश में देखभालकर खाने में हिंसा नहीं होनी चाहिए। हार समाधार में आनार्य सिगाते हैं कि सूर्य के प्रकाश और दीपकादि के प्रकाश में भारी अन्तर है। दीपकादि की रोशनी से तो जीव जन्तु आकर्षित होकर सर्वत्र फैल जाते हैं, वायुमण्डल जीव जन्तुओं से व्याप्त हो जाता है पर सूर्योदय होने पर मच्छरादि कीटाणु छिप जाते हैं और वायुमण्डल प्रासुक हो जाता है । रात्रिभोजन का त्यागी ही अहिंसक हो सकता है । रात्रि भोजी कभी अहिंसक नहीं बन सकता है॥ १४ ॥ • निशि भोजन त्याग का फल
निशि को जो इक साल तक, यदि दे भोजन त्याग। ... मक्षिकागर्भसंभूत बालांडकनिपीडनात् । ____ जातं मधुकथं संतः सेवन्ते कललाकृतिः ।।
अर्थ - मधुमक्खी के गर्भ से उत्पन्न छोटे-छोटे अंडे जिस शहद में मौजूद हैं, उनका सेवन करने से उन सूक्ष्म जीवों का विघात होता ही है फिर भला मधु सेवन करने वाला हिंसा रहित कैसे हो सकता है अर्थात् मधु सेवन से हिंसा अवश्य होती है ।। १३ ॥ SewasanaKISARAMARREARREARSASARANAScrasaeranamaskasa
धर्मानन्द श्रावकाचार -८१६९