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ZANASANA
मधु में हिंसा -
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मधुमक्खी की लार से, शहद की उपज विख्यात ।
अण्डे बच्चे घात कर, बेचत निर्दई जात ॥ १३ ॥
अर्थ- मधुमक्खियों की लार का संचय होकर शहद तैयार होती है उसमें अण्डे बच्चे आदि का बहुमात्रा में घात होता है जो निर्दयी है वह व्यक्ति ही मधु का व्यापार करता है । जीवदया का पालन करने वाले को शहद मधु भी नहीं खाना चाहिए। किसी भी रूप में उसका प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
BANASANKRA
मधु के एक कण में भी असंख्य जीवों की हिंसा है इसलिए जो मूर्ख बुद्धि शहद को खाता है वह अत्यन्त हिंसक है ।। १३ ॥
... (ब) पृथिव्यपतेजोवायुवनस्पतयः स्थावराः द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः ।
स्थावर जीवों के ५ भेद हैं- १. पृथिवीकायिल, २. जतकासिक 3. तेजकायिक ४. वायुकायिक. ५. वनस्पतिकायिक ।
त्रस जीव द्वीन्द्रिय आदि के भेद से ५ प्रकार के हैं
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यथा द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय-असंज्ञी एवं संज्ञी पंचेन्द्रिय आदि ।
(स) अनुमंताविशासितानिहन्ता क्रय विक्रयी । संस्कर्ता चोपहर्ता चखादकश्चेति घातकाः ॥
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अर्थ - जिनमें हिंसा संभवित है उन कार्यों की अनुमोदना करना, प्रेरणा देना, स्वयं घात करना, जीवों के घात के लिए क्रय-विक्रय करना, मांस की लोलुपता वश जीवों का पालन-पोषण करना, अपहरण करना, मांस खाना आदि सभी कार्यों से वह घातक ही होता है ।। १२ ।।
१३. स्वयमेव विगलितं यो गृहणीयाद् वा छलेन मधुगोलात् । तत्रापि भवति हिंसा तदाश्रय प्राणिनां घातात् ॥
अर्थ - मधु के छत्ते से, कपट से अथवा मक्खियों द्वारा स्वयमेव उगली हुई शहद ग्रहण की जाती है वहाँ भी उसके आश्रयभूत प्राणियों के घात से हिंसा होती है। और भी -
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धर्मादि श्राचकाचा १६८