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________________ SABAKANAEL • मांस भक्षण में पाप MEREACHYAEAEACABABACAR जीव घात बिन मांस की, उत्पत्ति कबहु न होय । माँसाहार से जीव वह, हिंसा दोषी होय ॥ १२ ॥ अर्थ- जीव घात के बिना माँस की उत्पत्ति होती नहीं अतः मांसाहारी नियम से हिंसक होता है, हिंसा से पाप बन्ध होता है और दुर्गति की प्राप्ति होती है। - KEREHEKEA भावार्थ- माँस स्वभाव से ही अपवित्र है, दुर्गन्ध से भरा है। दूसरों के प्राणघात से तैयार होता है, विपाक काल में दुर्गति को देता है। इस संदर्भ मेंविशेष कथन - बहुत से बौद्धादि मत वालों का कहना है कि जीव को ... हृष्यति न बुध्यते हितमघमोहितमतिर्विषीदति । " अर्थ- शराब के नशे में चूर व्यक्ति कभी गाता है कभी चलता है कभी बोलता है कभी फूट-फूटकर जोर से रोता है कभी दौड़ता है, दोषों में स्वभावतः अवगाहन करता है, कभी मारता है कभी प्रसन्न दिखता है मेरा हित किसमें है यह नहीं समझता - पाप में मोहित बुद्धिवाला वह बहुत दुःखी रहता है। (क) रसजानां च बहूनां जीवानां योनिरिष्यते मद्यं । - मद्यं भजतां तेषां हिंसा संजायतेऽवश्यं ।। पुरुषार्थ. ६३ ॥ अर्थ- मदिरा बहुत से रस से उत्पन्न हुए जीवों की योनि (उत्पत्तिस्थान) है अतः मदिरा पान करने वालों के द्वारा उन जीवों की हिंसा अवश्य ही होती है। (ख) विविधाः शरीरिणस्तत्र सूक्ष्म वपुषोरसांगिकाः । तेऽखिला झटितियांति पचतां निंदितस्य सरकपानतः || " अर्थ संसारी जीवों में सूक्ष्म बादरादि अनेक भेद हैं। रस से उत्पन्न रसांगिक जो सूक्ष्म जीव हैं वे सब शराब पीने से मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं इसलिए शराब पीना अति निंदित है। निंदित शराब के सेवन से अनन्त सूक्ष्म जीवों का विघात होता है ऐसा मूल श्लोक का अभिप्राय है ॥ ११ ॥ SASABASIER LASAKASAKASARAYACARAELCARACASARALABA धर्मानन्द श्राकाचार १६६ 2 २ "
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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