SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ AREA ACARAKANINANACARAKATAUKAR कुरल काव्य मे श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने संयम की महिमा दर्शाते हुए कहा है - “संयम के माहात्म्य से मिलता है सुरलोक । और असंयम राजपथ, रौरव को बेरोक ॥ यहाँ सैरव का अर्थ नरक है। असंयम से नरक और संयम से स्वर्ग तथा क्रम से मोक्ष की प्राप्ति होती है। और भी - “समझ बूझ कर जो करे इच्छाओं का रोध। मेधादिक कल्याण वह, पाता बिना विरोध ॥" इत्यादि प्रकार से संयम के महत्व और स्वरूप को जानकर हमें आत्म कल्याण के लिये संयम अवश्य धारण करना चाहिए । संयम के बिना ज्ञान फलीभूत नहीं होता है, मोक्ष का कारण नहीं बनता है॥६॥ • तपाचरण से लाभ - अनशनादि षट् बाह्य तप, प्रायश्चित्त युत धार। जिससे होवे कर्मक्षय, आतमशुद्धि अपार ॥७॥ ६. मनःकरण संरोषस्त्रस स्थावर पालनं। संयमः सद्ग्रहीतं च स्वयोग्यं पालयेत्सदा ॥ अर्थ - मन और इन्द्रियों का निरोध करना, बस और स्थावर जीवों की रक्षा करना संयम है । पदानुसार - गुणस्थानानुसार गृहीत संयम को सदा ही यथायोग्य पालना चाहिये। और भी - जानने योग्यसंयम की दुर्लभता और अनिवार्यता __ संसृते नृत्वेन कुत्रापि संयोदेहिनां भवेत्। मत्वेत्येकापिकालस्य कला नेया न तं बिना ॥ अर्थ - चतुर्गति रूप संसार में भ्रमण करने वाला जीव क्वचित् पुण्ययोग से मनुष्य भव पाकर संयमी होता है। संयम की अति दुर्लभता इस प्रकार जानकर काल का एक क्षण भी संयम के बिना व्यतीत करें। KARNATASTERESHERMANISSUERemiaasasaramaesansaAAREER धमनिन्द श्रापकापार--१५७
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy