________________
SASAKASKEREKECCAER
• संयमाचरण से लाभ
LAYAN
KASABASABA
दया पाल षटुकाय नित, वश करि इन्द्रिय थोक ।
इस विधि संयम से करें, पापास्रव की रोक ॥ ६ ॥ अर्थ - षट्काय जीवों की रक्षा स्वरूप दयाभाव का प्रगट होना तथा पाँचों इन्द्रिय और मन को अशुभ प्रवृत्ति से रोकना संयम है इनसे पापास्रव रूकता है।
अतः संयमाचरण भी आत्मा प्रभावना हेतु अनिवार्य है। गृहस्थ एक देश संयम धारण कर सकल संयम की भावना रखता हुआ कर्मों की असंख्यात गुणी निर्जरा कर सकता है।
पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पति कायिक इन पाँच स्थावर जीवों की रक्षा और भेद-प्रभेद सहित त्रस जीवों की रक्षा के प्रयास को षट्काय जीवों की रक्षा कहते हैं । जीवदया की भावना होने पर ही षट्काय जीवों की रक्षा के प्रति प्रवृत्ति होती है। इसी तरह आत्महित की भावना जब बलवती होती है तब पाँचों इन्द्रियों के विषय भी उसे रूचिकर नहीं लगते हैं । विषयों भोगों से इन्द्रियों को हटाकर धर्मध्यान में लनाना इन्द्रिय संयम है।
गृहस्थ जीवन में एक देश संयम धारण कर वह प्राणि संयम और इन्द्रिय संयम का पालन करता है। इन्द्रिय संयम का अर्थ है- इष्टानिष्ट विषयों में रागद्वेष का त्याग। अमनोज्ञ पदार्थों में द्वेष नहीं होना तथा स्त्री, पुत्र, धन आदि मनोज़ पदार्थों में राग भी नहीं होना इन्द्रिय संयम है। इनकी सिद्धि के लिये स्वाध्याय एवं तत्त्व चिन्तन का निरन्तर अभ्यास रखना होगा । उन्मार्ग गामी दुष्ट घोड़े को जैसे लगाम के द्वारा वश में कर लेते हैं उसी प्रकार इन्द्रिय रूपी दुष्ट घोड़ों का निग्रह, तत्त्वज्ञान से होता है।
SAUSKASAGAUNLARARACASAKASZCABASTETSKUASABASHUHUTEN
धर्मानन्द श्रावकाचार १५६