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________________ SAUFRAGAGASARA: 2828280 LESENELASAYA है वही सर्वज्ञ भी होता है । जो वीतरागी नहीं वह सर्वज्ञ भी नहीं और हितोपदेशी भी नहीं । इत्यादि प्रकार लक्षणों से सच्चे देव की परीक्षा कर पूजा करना योग्य है। भगवती आराधना में पूजा के २ भेद बताये गये हैं- "पूजा द्विप्रकारा द्रव्यपूजा भावपूजा चेति” १. द्रव्य पूजा, २. भावपूजा ये पूजा के २ भेद हैं। द्रव्य पूजा किसे कहते हैं ? इसके समाधान में भगवती आराधना में आचार्य लिखते हैं- “गन्धपुष्पधूपाक्षतादिदानं अर्हदाद्युद्दिश्य द्रव्य पूजा । अभ्युत्थानप्रदक्षिणीकरण प्रणमनादिका काय क्रिया च वाचा गुणस्तवनं च । " अर्हन्त आदि के उद्देश्य से गंध, पुष्प, धूप, अक्षतादि समर्पण करना यह द्रव्य पूजा है तथा उठकर खड़े होना, तीन प्रदक्षिणा देना, नमस्कार करना वगैरह शरीर क्रिया करना, वचनों से अर्हत देव के गुणों का स्तवन करना यह भी द्रव्य पूजा है । - वसुनन्दि श्रावकाचार में इस संदर्भ में विशेष उल्लेख इस प्रकार हैद्रव्य पूजा सचित्त, अचित्त और मिश्र के भेद से तीन प्रकार की है - १. सचित्त प्रत्यक्ष उपस्थित जिनेन्द्र भगवान् और गुरू आदि का यथायोग्य पूजन करना सो सचित्त पूजा है। - २. अचित्त - उन्हीं तीर्थंकरादि की आकृति - शरीर की पूजा तथा लिपिबद्ध शास्त्र की पूजा अचित्त पूजा है और ३. जो दोनों पूजा है वह मिश्र पूजा है। आगम द्रव्य और नोआगम द्रव्य आदि के भेद से अनेक प्रकार के द्रव्य निक्षेप को जानकर शास्त्र के प्रतिपादित मार्ग से द्रव्यपूजा करनी चाहिए। भाव पूजा किसे कहते हैं - भगवती आराधना ग्रन्थ के अनुसार - "भाव पूजा मनसा तद्गुणानुस्मरणं" मन से अर्हन्त के गुणों का स्मरण करना, चिन्तन करना भाव पूजा है। KARAKAVASTRAGASAGÁSAYAKÁVAGAGAGAGAGALAGAZAURSALAZA धर्मानन्द श्रावकाचार १४१
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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