________________
SRAERTISASGEERISASURESTERISESERTEassassasaramsagak लेकर कोड़ा मारा पर दैव वश वह चोट उसके किसी मर्म छेदक स्थान पर लगने से वह मर गया - यहाँ पर द्रव्य हिंसा को महान हुई किन्तु भाव हिंसा अल्प होने के कारण पाप बन्ध अल्प ही होगा - महान् नहीं। यहाँ ऊपर दृष्टान्त में थोड़ी द्रव्य हिंसा किन्तु बंध महान और नीचे के दृष्टान्त में महान् द्रव्य हिंसा किन्तु बन्ध अल्प बताया है । फलितार्थ यही हुआ कि हिंसा पर वस्तु की हिंसा अनुसार नहीं किन्तु अपने भावानुसार होती है। इसी सिद्धान्त को पुनः पुनः अनेक दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट करेंगे। ___ दोहा ११ में यह बताया है कि द्रव्यहिंसा एक जैसी होते हुए भी फल में अन्तर देखा जाता है - एक साथ मिलकर की गई भी द्रव्यहिंसा फल काल में भिन्न-भिन्न प्रकार के फल को देती है। एक का वही द्रव्य हिंसा बहुत फल को देती है और दूसरे को वही द्रव्य हिंसा अल्प फल देती है। यहाँ भावों की विचित्रता से फल में विचित्रता जानना।
उदाहरण - किसी व्यक्ति को दो आदमी मिलकर पीटने लगे । एक में उसके प्रति तीव्र कषाय है दूसरे में मन्द तो परिणामों के अनुसार अधिक भाव हिंसाधारी को अधिक पाप बंध और मन्द भाव हिंसा धारी को पाप बन्ध भी मन्द अर्थात् अल्प होता है। अर्थात् फल भाव हिंसा के अनुसार ही होता है द्रव्य हिंसा अनुसार नहीं ॥ ११ ॥
दोहा नं. १२ में ऐसा बताया है कि - कोई हिंसा, होने से पहले ही फल दे देती है और कोई हिंसा, द्रव्य हिंसा करते हुए ही फल देती है और कोई हिंसा द्रव्य हिंसा हो चुकने पर फल देती है। सारांश यहाँ भी यही है कि हिंसा, कषाय भावों के अनुसार फल देती है द्रव्य हिंसा के अनुसार नहीं ॥ १२ ॥ ___दोहा नं. १३ में बताया है कि द्रव्य हिंसा तो एक करता है किन्तु फल भोगने के भागी बहुत होते हैं। दूसरी तरफ द्रव्य हिंसा करने वाले बहुत हों और फल भोगने वाला कोई एक हो ऐसा भी होता है। १३ ।। VABASA . ANUKKU KARUNARANASASAKURA ada
हामानन्द श्रावकाचार--१२७