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ISASABASABASASAGALACHETULEKUKSASARA
SENAZZYAKEER
• स्थूल हिंसा निषेध
बहुत हने अघ बहु लदे, एक थूल हन लेय ।
यह भी हेतु न उचित बुध, निज सम पर गिन लेय ॥ २० ॥
अर्थ- प्रस्तुत दोहे में यह बताया है कि बहुत प्राणियों के घात से उत्पन्न हुए भोजन से एक जीव के घात से उत्पन्न हुआ भोजन अच्छा है ऐसा विचार कर कदाचित् भी बड़े जीव का धात नहीं करना चाहिये। क्योंकि जिस प्रकार अपने को मृत्यु के समय पीड़ा होती है उसी प्रकार अन्य सभी प्राणियों को चाहे वे स्थूल हों या सूक्ष्म बराबर रूप से दुःखानुभूति होती है ।
भावार्थ .. कुछ अज्ञानी जों का ऐसा विचार है कि जिसमें असंख्य निगोद जीव हैं ऐसे आलू, मूली, गाजर आदि की अपेक्षा एक बड़े भैंसा को मारकर खाना अच्छा है क्योंकि एक जीव का ही घात होता है। मूली आदि को खाने वाले असंख्य जीवों का घात करते हैं, इत्यादि। सो यह कथन उचित नहीं । दोनों ही असेवनीय अभक्ष्य हैं। शास्त्र के अनुसार एकेन्द्रिय जीवों के मांस का सद्भाव नहीं है, त्रस जीवों के काय को मांस कहा है। कषाय तीव्र होने से त्रस के घात में और उनके भक्षण में भी अधिक दोष है। जितनी क्रूरता त्रस जीवों को मारने में देखी जाती है उतनी क्रूरता कषाय की उग्रता एकेन्द्रिय जीव घात में नहीं होने से अनेक एकेन्द्रिय की अपेक्षा एक पंचेन्द्रिय घात करना अच्छा है यह कथन न तो युक्तिसंगत है और न आगम संगत ॥ २० ॥
२०. बहुसत्त्वघातजनितादशनाद् वरमेक सत्व घातोत्थं 1 इत्याकलय्य कार्यं न महासत्त्वस्य हिंसनं जातु ॥। ८२ ।। पुरुषार्थ. ।
अर्थ - बहुत 'प्राणियों के घात से उत्पन्न हुए भोजन से एक जीव के घात से उत्पन्न भोजन अच्छा है ऐसा विचार कर बैल आदि महा दीर्घकाय जीव को मारकर भोजन तैयार कर अतिथि सत्कार आदि को कुतर्क जानकर छोड़ना चाहिए।...
KASAKAKASANAYAGARAGAYAGASTELULUTUTASARAYASAEKEKSZER
धर्मानन्द श्रावकाचार १३६