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XRUZNANZSAtakarā ar tiktatur CARRUARANTEAUCANA वाले इस प्रकार खोटे परिणाम नहीं करता अपितु दीन, दुःखी, अनाथों, अशरणों को यथायोग्य दान, सम्मान देकर उनका संरक्षण करता है। जिनशासन में इसे दया दत्ति दान कहा है। इसलिए उत्तम श्रावकों को जल, आवास, वस्त्र, अन्न, भोजन की व्यवस्था कर दीन-अनाथों का रक्षण कर अहिंसाधर्म का प्रचार व प्रसार करना चाहिए।
महाव्रतधारी मुनिव्रत धारण कर अहिंसाधर्म का उपदेश देना, बलिप्रथा आदि कुधर्मों, कुप्रथाओं को रोकने का प्रयास कर, उपाय कर, जीव रक्षण, दया, करुणा, ममता भाव जाग्रत कराकर अहिंसाधर्म का प्रचार करना चाहिए। अभक्ष्य त्याग, मांसाहार त्याग और शाकाहार करने का प्रचार करना चाहिए । वर्तमान में सर्वत्र हिंसा का प्रच्छन्न प्रचार हो रहा है, खाद्य पदार्थों का निर्माण अण्डादि जीवों के घात का साधन बन गया है। यहाँ तक कि अन्न उत्पादन के साधन भी हिंसात्मक हैं यही नहीं फल, शाक, सब्जी, दूध आदि में भी हिंसात्मक सामग्रियों का प्रयोग हो रहा है । इसे प्रख्यातकर उसके दोषों को दिखलाकर दया धर्म, अहिंसा धर्म का प्रचार करना चाहिए।
बूचड़खानों ने तो घोर पशुयज्ञों का नारकीय दृश्य उपस्थित कर रक्खा है। जो महान् दर्दनाक, वीभत्स और पाप का खुला दृश्य है। इसे रोकने का प्रयास कर अहिंसा धर्म प्रचार करना आवश्यक है। अतः हम सच्चे श्रावक व साधु बनें और धर्म प्रचार करें यही भगवान महावीर का सिद्धान्त है। इसके लिए हमारे विचारों-व्यवहारों में अहिंसा, सिद्धान्त में अनेकान्त और वाणी में स्याद्वाद होना आवश्यक है ।। ३६ ॥ ३६. यतीनां श्रावकानां च व्रतानि सकलान्यपि ।
एकाऽहिंसा प्रसिद्धयर्थं कधितानि जिनेश्वरैः॥ अर्थ - यत्तियों के व्रत हो या श्रावकों के सभी व्रतों में अहिंसा ही एक समष्टि रूपता को प्राप्त है, उसकी विशेष प्रसिद्धि है ऐसा जिनेश्वरों की वाणी है। TABULANZSakada AUKNAVATEURASTAMALAR
धनिन्छ श्रावकाचार-५११