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प्रस्तावना
(घ) कृतियाँ
समन्तभद्रकी ५ कृतियां उपलब्ध हैं : १. देवागम-प्रस्तुत कृति है ।
२. स्वयम्भूस्तोत्र-इसमें चौबीस तीर्थकरोंका दार्शनिकशैलीमें गुण-- स्तवन है।
३. युक्त्यनुशासन-इसमें भी वीरकी स्तुतिके बहाने दार्शनिक निरूपण है । यह ६४ पद्योंमें समाप्त है।
४. जिन-शतक (स्तुति-विद्या)-यह ११६ पद्योंको आलंकारिक अपूर्व काव्य-रचना है । चौबीस तीर्थंकरोंकी इसमें स्तुति की गई है। ___५. रत्नकरण्डकश्रावकाचार-यह उपासकाचार विषयक १५० पद्यों.. की अत्यन्त प्राचीन और महत्त्वपूर्ण कृति है।
इनमें आदिकी तीन दार्शनिक, चौथी काव्य और पांचवीं धार्मिक कृतियाँ है।
इनके अतिरिक्त भी इनकी जीवसिद्धि जैसी कुछ कृतियोंके उल्लेख मिलते है पर वे अनुपलब्ध हैं।
उपसंहार प्रस्तुत प्रस्तावनामें देवागम और स्वामी समन्तभद्रके सम्बन्धमें प्रकाश डाला गया है। इसी सन्दर्भमें देवागमकी व्याख्याओं और उसकी रचनाका प्रेरणास्रोतपर भी अनुचिन्तन प्रस्तुत किया गया है । प्रस्तावना यद्यपि अधिक लम्बी हो गई है तथापि उसमें किया गया विचार पाठकोंको लाभप्रद होगा।
अन्तमें प्रस्तुत ग्रन्थके अनुवादक एवं सम्पादक तथा जैन साहित्य व इतहासके वेत्ता श्रद्धेय पं० जुगलकिशोरजी मुख्तारके इस देवागमअनुवादकी सराहना करूंगा। देवागम जैसे दुरवगाह दर्शन-ग्रन्थका बड़े परिश्रम के साथ ग्रन्थानुरूप हिन्दी रूपान्तर प्रस्तुत करके समन्तभद्रभारतीके