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प्रस्तावना
समन्तभद्रने सदसद्वादकी तरह अद्वैत - द्वैतवाद, शाश्वत - अशाश्वतवाद, अपेक्षा-अनपेक्षावाद, हेतु
वक्तव्य - अवक्तव्यवाद, अन्यता- अनन्यतावाद, अहेतुवाद, विज्ञान - बहिरर्थवाद, दैव- पुरुषार्थवाद, पाप-पुण्यवाद, और बन्ध-मोक्ष कारणवाद इन एकान्त वादोंपर भी विचार प्रकट किया तथा उक्त प्रकार से उनमें भी सप्तभङ्गी ( सप्तकोटियों ) की योजना करके स्याद्वाद की स्थापना की। इस तरह विचारकोंको उन्होंने स्याद्वाद - दृष्टि ( तत्त्व-विचारको पद्धति ) देकर तत्कालीन विचार-संघर्षको मिटाने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। साथ ही दर्शन के लिए जिन उपादानोंकी आवश्यकता होती है उनका भी उन्होंने सृजन किया तथा आर्हत दर्शनको अन्य दर्शनोंके समकक्ष ही नहीं, उसे गौरवपूर्ण भी बनाया ।
जिन उपादानोंकी उन्होंने सृष्टि करके उन्हें जैन दर्शनको प्रदान किया वे इस प्रकार हैं :
१. प्रमाणका स्वपरावभासि लक्षण ? |
२. प्रमाणके अक्रमभावि और क्रमभावि भेदोंकी परिकल्पना ३ ।
३. प्रमाणके साक्षात् और परम्परा फलोंका निरूपण ।
४.
प्रमाणका विषय "
५.
नयका स्वरूप ६
६. हेतुका स्वरूप ७
७.
स्याद्वादका स्वरूप
१. आप्तमी० का० २३, ११३ । २. स्वयम्भूस्तोत्र का० ६३ ।
३. आप्तमीमांसा का० १०१ ।
४.
उपेक्षा फलमाद्यस्य शेषस्यादान - हान- धीः । पूर्वाऽवाऽज्ञाननाशो वा सर्वस्यास्य स्वगोचरे ॥
५. आप्तमी० १०७ ।
६., ७. आप्तमी० १०६ ।
८. आप्तमी० १०४ ।
- आप्तमी० १०२ ॥
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