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________________ देव शिल्प वर्तमान युग में मन्दिर निर्माण वर्तमान काल में मन्दिर निर्माण का कार्य पूर्णतः प्राचीन शैली से किया जाना अत्यंत व्यय साध्य कार्य है। अतएव वर्तमान युग के देवालयों में प्राचीन सिद्धांतों का अनुसरण एक सीमा तक ही किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त शहरीकरण के युग में मन्दिर निर्माण के लिये पर्याप्त भूमि भी अनुपलब्ध होती है। ऐसी स्थिति में मन्दिर निर्माण करते समय मूल सिद्धांतों का पालन करते हुए मन्दिर बनाना चाहिये । 105 प्रवेश द्वार के उपरांत एक अथवा दो कक्ष दर्शनार्थियों के लिए निर्माण करना चाहिये। इसके उपरांत गर्भगृह का निर्माण करना चाहिये। गर्भगृह में वेदी पर देव प्रतिमा की स्थापना करना चाहिये । गर्भगृह पर शिखर का निर्माण करना चाहिये। शिखर एवं गर्भगृह, वेदी तथा प्रतिमा का निर्माण सिद्धांत के अनुसार ही करना चाहिये। इसमें किसी भी प्रकार की अशुद्धि अथवा असावधानी देवालय निर्माता, शिल्पकार तथा समाज सभी के लिए अनिष्टकारी है। वेदी पर प्रतिमा की स्थापना करते समय द्वार के जिस भाग में दृष्टि आना चाहिये, वहीं पर आये, यह अत्यंत गंभीरता पूर्वक ध्यान रखें 1 द्वार का मान शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार ही रखें। मण्डप अथवा कक्ष भीतर से आयताकार अथवा वर्गाकार ही बनायें। मंडप अष्टारा भी बना सकते हैं किन्तु दोष एवं वेध का परिहार करने के उपरांत ही बनाये। जिन मन्दिरों को व्यक्त अथवा भिन्न दोष सहित बनाया जा सकता है उन्हें ही व्यक्त बनायें । जिन मन्दिरों को सूर्य किरण वेधित (भिन्न दोष) रहित बनाना है वहाँ गर्भगृह एवं मण्डप इस प्रकार अवश्य बनायें कि सूर्य किरण गर्भगृह में सीधे प्रवेश न करें। यह प्रकरण व्यक्त अव्यक्त प्रासाद प्रकरण में भी अबलोकन करें। बहुमंजिला मंदिर स्थानाभाव के कारण तथा बड़ी समाजों की उपयोगिता के अनुरुप बहुमंजिला मन्दिर भी बनाये जाते हैं । बहुमंजिला मन्दिरों को निर्माण करते समय निन्न लिखित विशेष नियम ध्यान में रखना आवश्यक है - १. २. ३. वेदी के ऊपर वेदी बनायें ऐसा निर्माण करें। यदि वेदी के ऊपर वेदी बनाना इष्ट न हो तो यह ध्यान रखें कि उपासकों का आवागमन वेदी के ऊपर से न होवे । यदि ऊपरी मन्जिल में वेदी बनाना है तथा नीचे की मंजिल में नहीं बनाना हो तो वेदी नीचे से ठोस बनायें, पोली नहीं । वेदी नीचे की मंजिल से ठोस स्तंभ के रूप में ऊपर तक ले जाएं।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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