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(देव शिल्ग
गर्भगृह
अंतराल
गूढ़ मंडप
रंगमंडप
अव्यक्त (सांधार मंदिर)
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प्राचीन स्थापत्य शैली के जिनालयों में हमें सर्वत्र उपरोक्त व्यवस्था दृष्टि गोचर होती है। सांधार मंदिरों में हमें जिन प्रतिमा के अतिशय के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं। सांधार मंदिर बनाते समय प्राचीन शिल्पकारों ने पर्याप्त सावधानी रखी है। दक्षिण भारत के जैन जैनेतर मन्दिरों में हमें अनेक स्थानों पर यह व्यवस्था सामान्यतः देखने में आती है।
उत्तर भारत में कुछ
समय से वास्तु शास्त्र के नियमों की उपेक्षा करके सुविधा के अनुसार जिनालयों का निर्माण किया गया है। इराके कारण जहां एक ओर प्रभावना एवं अतिशय का अभाव दृष्टि में आता है वहीं दूसरी ओर मन्दिरों की स्थिति मी जीर्णशीर्ण एवं उपेक्षा का शिकार हुई साथ ही वहां की सम्बन्धित स्थानीय समाज भी पतन के मार्ग पर अग्रसर रही। अतएव जिनालय निर्माणकर्ता प्रारंभ रो ही मन्दिर निर्माण के मूल भूत सिद्धांतों का अवश्य अनुकरण करें