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(देव शिल्प
C व्यक्त-अव्यक्त प्रासाद
मंदिरों में सूर्य किरण प्रवेश की अपेक्षा से दो गेद किये जाते हैं। सूर्य किरण प्रवेश को गिन्न दोष माना जाता है *:
१. भिन्न दोष युक्त अथवा व्य मंदिर २. भिन्न दोष रहित अथवा अव्यक्त मंदिर
जिन मंदिरों में गर्भगृह में जालो अथवा द्वार से सूर्य किरणें आती हैं उन्हें व्यक्त मंदिर कहते हैं। इन्हें निरंधार मंदिरभी कहते हैं। ये मंदिर बिना परिक्रमा के बनाये जाते हैं। जि- मंदिर में गर्भगृह में सूर्य प्रकाश की किरणें आती हैं ऊ हे भिन्नदोष युक्त माना जाता है।
जिन गंदिरों में गर्भगृह में रार्य किरणें नहीं पहंचती हैं उसे सांधार अथवा अव्यक्त मंदिर कहते हैं । सांधार मंदिर में गर्भगृह तथा परिक्रमा होती है। जिन मंदिरों का गर्भगृह लम्बे बरामदे, द्वार, जालो आदि से सूर्य किरणों से भेदा नहीं जाता है उन्हें अभिन्न अथवा भिन्न दोष रहित मंदिर की संज्ञा दी जाती है।
जिनालय सांधार अथवा भिन्न दोष रहित ही बनाना चाहिये । गौरी, गणेश, मनु के बाद होने वाले देवों के मंदिर भी भिन्न दोष रहित बनाना चाहिये। ब्रह्मा, विष्णु, शिव एवं सूर्य मन्दिर सांधार अथवा निरंधार अथवा भिन्न अथवा अभिन्न अपनी इच्छा एवं उपयोगिता के अनुरुप बना सकते हैं।
जिन देवों के मंदिर भिन्न दोष रहित बनाना है उन्हें भिन्न दोष सहित कदापि न बनायें।
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"भिन्न टोपकर यरपात प्रासाद मठ मन्दिरम् । पृषामिर्जालकैद्धरि रश्मिवात प्रभादितप ।। १० ।। प्रा.नं.८/५७ ब्रह्म विष्णु शिवाकणां भिब्जदोषकर नहि। जिन गौरी गणेशानां गृहं भिखं विवर्जयेत् ।।१८।।प्रा. मं 1./१८ व्यक्तान्यक्त हं कुर्याद भिन्नाभिन्न मुर्तिकन् । यथा स्वागिशरीरं स्टात् प्रासादमपिताशप ।। प्रा. नं ८/१९ ब्रह्म विष्णुरवीणां च शम्भोः कार्या वरच्या । गिरिजाया जिजादीनां मन्वन्तरभुवां तथा ।। अपराशि वृचा सूट ११० एतेषां च सुरणां च प्रासादा भिक वर्जिताः । प्रासाद मठ वेश्मान्य निमानि शुभदाजि हि । शि.र.५/१३३ व्यक्ताव्यक्त लयं कुर्यादापच भित्रमूर्तयोः । मुर्ति लक्षणजे स्वामी प्रासादं तस्य ताशम् ।।शि... १३४ ब्रह्मा विष्णु शिवाकाणां गृहभिन्नं न दोषदम् । शेषाणां दोषटं भिन्नं व्यक्ताव्यक्तताह शुभम् ।। प्रा.पंजरो/१५९