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देव शिल्प)
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भूमि जल शोधन
जलकूप खोदते समय कुछ विशिष्ट लक्षणों के द्वारा यह जानने का प्रयास किया
जाता है कि यहाँ कुआँ खोदने पर जल निकलेगा अथवा नहीं। प्रसंगवश कुछ लक्षणों को यहां उल्लेखित किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है।
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विभिन्न तिथियों में कूप खनन
नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता, पूर्णा, तिथियों में नामानुसार फल मिलता है। कूप खनन में वर्जित तिथि
क्षय तिथि, वृद्धि तिथि तथा त्रयोदशी को कूप खनन आरंभ न करें।
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जहाँ की मिट्टी नील वर्ण की होती है वहाँ मधुर जल होता है।
जहाँ की मिट्टी भूरे मटमैले वर्ण की होती है वहाँ खारा जल होता है।
जहाँ की मिट्टी काले या लाल वर्ण की होती है वहाँ मीठा जल होता है।
जहाँ की बालू या रेतीली मिट्टी लाल वर्ण की होती है वहाँ कसैला जल होता है।
जहाँ की मिट्टी मुंज, कास या पुष्य युक्त होती है वहाँ मीठा जल होता है।
जिस भूमि में गोखरु, खस आदि वनौषधि हों तथा खजूर, जामुन, बहेड़ा, अर्जुन, नागकेशर, मेनफल, बेंत, करंज, क्षीरीफल वाले वृक्ष होते हैं वहाँ मीठा जल लगभग ३० फूट दूर होता है।
अग्नि, भस्म, ऊंट, गर्दभ के जैसे रंग वाली भूमि होती है वहाँ जल नहीं होता है। जल रहित प्रदेश में बेंत की झाड़ी हो तो उसके पश्चिम में, तीन हाथ दूर सवा पांच हाथ नीचे जल होगा ।
९.
जामुन वृक्ष के उत्तर दिशा में तीन हाथ दूर साढ़े सात हाथ नीचे जल मीठा होता है। १०. पलाश सहित बेर के वृक्ष के पश्चिम में तीन हाथ दूर ग्यारह हाथ नीचे जल होता है।
५१. जल रहित प्रदेश में सोना पाठा के वृक्ष के वायव्य में दो हाथ दूर साढ़े दस हाथ नीचे जल
होता है ।
१२. महुआ वृक्ष के उत्तर में वामी होने पर वृक्ष के पश्चिम में पांच हाथ दूर सवा छब्बीस हाथ नीचे न युक्त झिर (जल स्रोत) होता है।
१३. तिलक, भिलावा, बेंत, बेल, तेंदु, शिरीष, फालसा, अंजन तथा अतिबल आदि वृक्ष हरे-भरे पत्रयुक्त हों तथा पास में बांबी हो तो चौदह हाथ नीचे जल होता है।
१४. भार्गी, जमालगोटा, केवाच, लक्ष्मण, नेवारौ ये वृक्ष जहाँ हो यहाँ से दक्षिण में दो हाथ दूर साढ़े दस हाथ नीचे जल होगा।
१५. जिस वृक्ष के फल-फूल में विकार उत्पन्न हो जाये उसके पूर्व में तीन हाथ दूर जल होगा ।