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(देव शिल्प
विभिन्न दिशाओं में जलाशय बनाने का फल
जलाशय की दिशा फल ईशान
तुष्टि, पुष्टि, ऐश्वर्य-लाभ, ज्ञानार्जन, धन लाभ
धन-सम्पत्ति-ऐश्वर्य लाभ आग्रेय
पुत्र नाश, संतति अवरोध, धनहानि दक्षिण
मानसिक तनाव, स्त्रो नाश, धनहानि, अपयश नैऋत्य मन्दिर के प्रमुख व्यवस्थापकों को मृत्युभय, अपयश पश्चिम सम्पत्ति लाभ, चंचलता, समाज में गलतफहमियों
का वातावरण, वैमनस्य वायथ्य
परस्पर मैत्री का अभाव, शत्रुवृद्धि, चोरी का भय उत्तर
धनगम मध्य
सर्व हानि
निष्कर्ष यह है कि योदल ईशान, पूर्व अथवा उत्तर में ही कूप खनन कराना हितकारक है। यह ध्यान रखें कि कूप ठीक ईशान, पूर्व या उत्तर में न हो। उत्तर से ईशान के मध्य अथवा ईशान से पूर्व के मध्य खनन करें। यह अवश्य ध्यान रखें कि मन्दिर के मुख्य द्वार के ठीक सामने कुंआ अथवा किसी भी प्रकार का गड्ढा बनवा-] अत्यंत अनिष्टकारक है।
नल कूप अथवा हैण्डपंप (BOREWELLS)
वर्तमान में यह पद्धति चल पड़ी है कि सुविधाजनक तथा अल्पस्थान के कारण कुए के स्थान पर नल कूप खुदाये जाते हैं। इनमें भी वही दिशा रखें जो कि कुआं खुदाने के लिये निर्देशित की गई है। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि नल कूप में ऐसी व्यवस्था हो कि जल छाने के उपरान्त जिवानी पुनः जल में डाली जा सके।
यदि कुए उथले हों तथा आस पास की बस्ती के सैप्टिक टैंकों का गन्दला पानी कुए में आने लगा हो तो कुएं के पानी का प्रयोग न करें। ऐसी स्थिति में नल कूप का ही पानी उपयोग कारा उपयुक्त है। जिवानी डालने की व्यवस्था करना कदापि न भूलें।