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________________ (द शिल्प जलपूर्ति व्यवस्था विचार पानी की टंकी मन्दिर में यद्यपि कूप अथवा बोर वेल से ताजा पानी प्रयोग किया जाता है। फिर भी निरंतर प्रयाग के लिये पानी की टंकी मारहारी खेल है। ...:. . . . . . टंकी बनाते समय निम्नलिखित निर्देशों का पालन अवश्य करें :१- यदि मन्दिर में ओवर हैड पानी की टंकी बनाया इष्ट हो तो इरो नैऋत्य कोण में ही बनायें। २. यदि गन्दिर में भूमिगत जल टंकी बनाना इष्ट हो तो इसे ईशान, उत्तर अथवा पूर्व में बनायें। ३- भूमिम्ल टंकी इस प्रकार बनायें कि प्रवेश मार्ग उसके ऊपर आये। ५. किसी भी परिस्थिति में आनेय दिशा में पानी की टंकी न बनायें। ऐसा करने से समाज में निरन्तर कलहपूर्ण वातावरण निर्मित होगा। ओवर हैड पानी की टंकी दक्षिण दिशा में बना सकते है। ओवर हैड टंकी इस प्रकार बनायें कि मन्दिरको शिखर रो रपर्श न हो तथा संमतही तारा शिशखर से दूर बनायें। ७- ओवर हैड टंकी इस प्रकार बनायें कि गन्दिर के शिखर से स्पर्श -1 हो तथा संभव हो तो पृश्यक से शिखर से दूर बनायें! मन्दिर वास्तु से पृथक ओवर हैड पानी की टंकी नैऋत्य दिशा में बनाना श्रेयस्कर है। आग्नेय में इसे कदापि -[ बनायें। ९- ओवर हैड टंको ऊपर से ढंकी रखें। कृय जिन मन्दिर में पूजनादि धर्म कार्यों के लिये कुएं का जल उपयोग किया जाता है। कुएं का निर्माण यदि मन्दिर परिसर में हो कर लिया जाता है तो इससे कुएं में भी स्वच्छता बनी रहती है तथा जल लाते समय भी अशुद्धि आने का भय नहीं रहता दर्शनार्थियों के लिए भी जल की आवश्यकता होती है साथ ही मुनिसंघों के अथवा त्यागो व्रतियों के लिये भी कुएं के जल की आवश्यकता होती है। सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मन्दिर में कुंए को निर्मित करना आवश्यक है। कुएं का निर्माण वास्तुशास्त्र के अनुसार तथा उचित दिशाओं में करना सभी उपयोगकर्ताओं, मन्दिर निर्माता एवं समाज के लिए हितकारक होता है। प्रसिद्ध ग्रन्थ "शागार धामृत'' में पं आशाधर जी ने इसके लिये निर्देश दिया है । कुन्द कुन्द श्रावकाचार एवं उमास्वामी श्रावकाचार में भी इसका उल्लेख किया गया है।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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