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________________ (देव शिल्प) ६७ मंदिर परिसर में व्यापारिक भवनों का निषेध मंदिर के परकोटे से लगकर अथवा परकोटे के भीतर भोजनालय अथवा अन्य प्रकार की दुकानें परिसर में बना दी जाती है। परिसर में आय का स्रोत बढ़ाने के लिए ये दुकानें किराये से दी जाती हैं अथवा विक्रय कर दी जाती हैं। इन दुकानों में अनेकानेक प्रकार के लोगों के आवागमन से वहाँ के परिसर का वातावरण धार्मिक न रहकर व्यावसायिक बन जाता है। वहीं की शुचिता भंग होती है तथा शान्तिमय वातावरण शोरगुल में बदल जाता कभी-कभी ऐसी भी परिस्थिति निर्मित होती है कि बेची गई दुकान में व्यसन अथवा अभक्ष्य आदि का व्यापार होने लगता है । मंदिर की शुचिता स्थायी रखने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि मंदिर परिसर में व्यापारिक संस्था अथवा दुकानों का निर्माण नहीं किया जाए। मंदिर परिसर के निकट भी अशुचितावर्धक दुकानें न खुलें, यह ध्यान रखना मंदिर व्यवस्थापकों के लिए आवश्यक है। मंदिर परिसर में अशुचिता वृद्धि होने से मंदिर का शुभप्रभाव सगाज को नहीं मिलेगा साथ ही अविनय आसादना दोष का विपरीत प्रभाव अवश्य होगा । बिजली का मीटर एवं स्विच बोर्ड मंदिर के प्रकाश के लिए विद्युत बल्ब आदि लगाये जाते हैं। विद्युत मीटर स्विच बोर्ड तथा मेन स्विच मांदर के आग्नेय भाग में ही लगाना चाहिए। आग्नेय में यदि असुविधा हो तो इन्हें वायव्य में लगायें। विद्युत मीटर आदि ईशान में बिल्कुल न लगायें। पानी की बोरिंग मशीन का स्विच बोर्ड भी इन्हीं दिशाओं में लगाना चाहिए। टाईल्स का प्रयोग मंदिर निर्माण में आज कल टाइल्स का प्रयोग किया जाने लगा है। टाईल्स का निर्माण यदि सीप या किसी भी प्रकार के जैविक पदार्थ (हड्डी आदि) से हुआ हो तो ऐसे टाईल्स का मंदिर निर्माण में उपयोग न करें। वेदी, फर्श तथा शिखर के निर्माण में भी ऐसे टाइल्स का प्रयोग नहीं करें।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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