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(देव शिल्प
मन्दिर प्रांगण की विविध रचनायें
___ मन्दिर प्रांगण में मुख्य मन्दिर के अतिरिक्त अनेकों वास्तु निर्माण किये जाते हैं। मुख्यतः इसका उद्देश्य धार्मिक गतिविधियों के निमित्त होता है । मन्दिर के अतिरिक्त तीर्थयात्रियों के लिये आवास रथल, भोजनालय, रसोई इत्यादि निर्माण की जाती है। साधुओं एवं त्यागी, व्रती, संयमी जनों के लिये आश्चम, मढ आदि का निर्माण किया जाता है । धार्मिक शिक्षण के लिये भी संस्थाओं की स्थापना की जाती है। वाहन, रथ आदि रखने के लिये भी समुचित स्थान की आवश्यकता होती है।
विभिन्न दिशाओं के अनुकूल निर्माण
प्रासाद के परिसर के विभिन्न भागों में अनेको निर्माणों की आवश्कता पड़ती है। प्रासाद मंडन में ग्रंथकार ने इसके लिये स्पष्ट निर्देश दिये हैं *:
प्रासाद के भाग की दिशा निर्माण । आग्नेय दिशा में
र्यातयों, साधुओं के लिये आश्रम पश्चिम, उत्तर या दक्षिण में यतियों, साधुओं के लिये आश्रम वायव्य कोण में
धा-य को सुरक्षित रखने का भंडार आग्नेय कोण में
रसोईघर ईशान कोण में
पुष्प गृह एवं पूजा के उपकरण का स्थान। नैऋत्य कोण में
पात्र एवं आयुध कक्ष पश्चिमी भाग में
जलाशय मठ के अग्रभाग में (पूर्व में) विद्यालय एवं व्याख्यान कक्ष पश्चिमी भाग में
रथ शाला उत्तरी भाग में
रथ का प्रवेशद्वार
*अपरे रखशाला च याप्टो प्रतिष्ठितम। उत्तरे स्थरतनं च प्रोक्तं श्रीविश्वकर्मणा ।। प्रा.मं.२/२५ प्रासादस्योत्तर याम्ये तथाग्नी पश्चिमेऽपि वा। वतीनामाश्रमं कुर्यान्मठं तददित्रिभूपिकम् ।।प्रा.म.८/33 कोष्ठागारं च वायव्ये दहिलकोणे महानसम् । पुष्पगेहं तवेशाने त्यो पात्रमायुधम् ।।प्रा.मं.८/२५ सत्रामा च पुरतों वारुण्यः च जलाश्रयम्।। मठस्य पुरतः काद विधाव्याख्यानमण्डपम् ।। प्रा.मं.८/३१