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(देव शिल्प
सीढ़ियों के लिये आवश्यक निर्देश १. सीढ़ियों के नीचे कोई भी महत्वपूर्ण कार्य न करें। २. किसी भी प्रकार की भगवान की अथवा यक्ष- यक्षिणी की वेदो न बनायें । ३. न ही जिन शास्त्रों का भंडार या आलभारी न रखें। ४. सीढ़ियों के ऊपर छत या छपरी अवश्य बनायें जिसका उतार उत्तर या पूर्व की ओर ही
होना आवश्यक है। ५. सोढ़ियों के नीचे शास्त्र पठन, जाप, स्वाध्याय, पूजन आदि कदापि न करें। सीढ़ियों की
संख्या विषम होनी चाहिये। ६. सोड़ियों का निर्माण इस प्रकार न करें कि उससे सम्पूर्ण भन्दिर की प्रदक्षिणा हो अन्यथा
समाज में अशांति एवं आपदाएं आने की सम्भावना रहेगी। ७. सीदियां बनाते समय ध्यान रखें कि ऊपरी मंजिल पर जाने तथा तलघर में जाने के लिये
एक ही स्थान से सीढ़ी न बनायें। ८, सीढ़ियों जर्जर हो, हिल रही हों अथवा जोड़ तोड़कर बनायी गई हो तो यह अशुभ है तथा
इनसमाज में मानसिक संताप का वातावरण बनता है। ९. सीढ़ियां प्रदक्षिणाक्रम अर्थात धड़ो की सुई की दिशा की तरफ (क्लाक वाइज) बनायें।
सोयान पंक्ति प्रमाण
सोपान का निर्माण गज परिवार युक्त अलंकृत करना चाहिये। सोपान की संख्या का प्रमाण इस प्रकार है -
कनिष्ठ मान - पांच, सात, नौ मध्यम मान - ग्यारह, तेरह, पंद्रह ज्येष्ठ मान - सत्रह, उनीस, इक्कीस सोपान संख्या विषम ही रखें, सम न रखें।
*परिखाराजैर्युक्तं, पंक्तिसोपालसंचयम्। पंचसप्तनवाश्च, कनिष्ठं मानमुत्तमम् । शि. र.४/३० . एकादश दश त्रीणि, तथा वै दशपंचकम् । मायनाजन विजय, कल्याण चकली युगे।। शि. र. ४/३१ सत्पदर्शय सोपान मेकानशितिभवेत्। उटोष्ठमाज भवेत्तच्छ, होलविशस्तथोत्तरम् ।। शि. र.४/३२