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(देव शिल्प
रिक्त भूमि एवं मंदिर भूमि विस्तार मंदिर निर्माण के उपरान्त यदि स्थान कम पढ़ने के कारण रागोप की भूमि लेना हो तो वास्तुशास्त्र के नियम के अनुकूल हो लेना चाहिए। मंदिर के पीछे की जमीन खरीदकर, मंदिर का विस्तार नहीं कर ! चाहिए।
मादेर के भूखण्ड के पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर की रिक्त भूमि क्रय कर भूमि का विस्टार किया जाना चाहिए। मंदिर के भूखाड के पश्चिम एवं दक्षिण दिशा की ओर की रिक्त भूमि क्रय कर भूमि का शिरतार नहीं करना चाहिए।
मंदिर की भूमि विस्तार करते समय यह आवश्यक है कि भूखण्ड का आकार न बिगड़े अर्थात भूखण्ड आयताकार अपना का दिन है। कोई भी गोल कटने अथवा अधिक बढ़ने का प्रसंग न आये। योग कटना अनिष्ट का संकेत करेगा।
उत्तर
उत्तर
Haglb
मंदिर
अतिरिक्तः भूनि लेने योग्य ।
पश्चिम
अतिरिक्त भूमि लेने योग्य नहीं
मंदिर
दक्षिण
दक्षिण
उत्तर
उत्तर
मंदिर
अतिरिक्त भूमि लेने योग्य
पश्चिम
अतिरिस भूमि लेने योग्य नहीं
पंदिर
दक्षिण
दक्षिण