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(देव शिल्प
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प्राचीन मन्दिरों में प्रायः मध्य में खुलो जगह छोड़ो जाली है। दक्षिण भारत में मन्दिर के गध्य में चौकोर खुली जगह रखी जाती है। प्राचीन शैली में भी मध्य में चौकी मण्डप (चतुष्किका) रखी जाती यो ! इस प्रकार का चौक पूरी तरह खुला भी रखा जाता है एवं आच्छादित भी। ऐसा करने से प्राकृतिक वाय प्रवाह एवं प्रकाश आता है । मन्दिर में आने वाले उपासकों के लिये यह अत्यंत उपयोगी है।
चौक को ऊपर से पूरी तरह खुला रखने के स्थान पर यदि उसमें जाली लगा दी जाये तो पक्षी एवं पानर आदि का आवागमन नहीं होता तथा मन्दिर में पवित्रता बनी रहती है। सुरक्षा की दृष्टि से भी यह उपयोगी है कि ऊपर जाली रहे।
____ मन्दिर में चौक रहने से समाज में पारस्परिक प्रेम-सद्भाव निर्मित होता है। समाज में मनमुटाव के अवरार कम होते हैं।
मन्दिर में रिक्त स्थान का नारा
मन्दिर निर्माण करते समय यह आवश्यक है कि परकोटे एवं मन्दिर के मध्य पर्याप्त खुली जगह छोड़ी जाये। खाली जगह उत्तर एवं पूर्व दिशा में अधिक छोड़ी जाये तथा दक्षिण एवं पारग में कम किसी भी स्थिति में उत्तर में दक्षिण की अपेक्षा कग से कम दुगुनी भूमि रिक्त रखना चाहिये। इसी प्रकार पूर्व में पश्चिम की अपेक्षा कम रो का दुगुनी भूमि रिक्त रखना चाहिए। ऐसा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
यदि गन्दिर के दक्षिण एवं पश्चिा में रिक्त स्थाः। अधिक हो तो विधान के परामर्श रो वहां कोई निर्माण कार्य करा लेना चाहिये। ऐसा करने से इसके दोष कम हो जायेंगे !
मंदिर में रिक्त स्थान का दिशानुसार फल | रिक्त स्थान की दिशा | फल
कार्य सम्पादन के लिए उत्साह, शनि आग्नेय
महिलाओं को स्वास्थ्य हानि दक्षिण
सर्वत्र कुफल सत्य
अशुभ पश्चिम
अशुभ
घायच्य
मध्यम
उत्तर
ऐश्वर्य लाभ उत्तम पुत्र, विद्या लाभ
ईशान