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________________ (देव शिल्प पादप्रक्षालन स्थल मन्दिर जिनेश्वर प्रभु का स्थान है अतएव यह परम पावन है तथा नव देवताओं में से एक देवता होने से पूज्य है। इसकी पूज्यता, शुचिता एवं पवित्रता स्थायी रखना प्रत्येक उपासक का कर्तव्य है। पूजन एवं दर्शन के इच्छुक उपासक को शुद्ध वस्त्र पहनकर आना अपेक्षित है। प्रवेश के पूर्व ही यह आवश्यक है कि वह अपने पांवों का जल से प्रक्षालन करे ताकि अशुचि बाहर ही रह जाये एवं प्रवेशकर्ता शारीरिक तथा मानसिक दोनों रुप से शुद्ध हो जाये। तभी यह भावपूर्वक जिनेश्वर प्रभु की बन्दना स्तुति पूजा सार्थक रुप से कर सकेगा। __ भन्दिर सामान्यतः पूर्वाभिमुखी अथवा उत्तराभिमुखी होते हैं। दोनों ही स्थितियों में पाद प्रक्षालन ईशान दिशा में प्रवेश के समीप हो रखना उपयोगी है। यदि कदाचित् किसी मन्दिर में पश्चिम दिशा से प्रवेश हो तो वायव्य दिशा की ओर पानी रखना चाहिये। - इसी तरह दांण से प्रवेश साधारणत नहीं होता किन्तु यदि ऐसा हो भी तो पानी किसी भी स्थिति में आग्नेय में न रखें। जल प्रवाह के लिये नाली का बहाव पूर्व, ईशान अथवा उत्तर दिशा में ही निकालना चाहिये। जूते-चप्पल रखने का स्थान जिनालय में यथाशक्य जूते-चप्पल पहनकर नहीं आना चाहिये। नंगे पैर आना वास्तव में तीन लोक के नाथ के प्रति उपासक की विनम्रता प्रदर्शित करता है। यदि अपरिहार्य स्थिति वश ऐसा कार भी पड़े तो जूते-चप्पल पानी के स्थान से पृथक आग्नेय अथवा वायव्य दिशा में हो रखना चाहिये। धर्मायतनों में प्रवेश करने के पूर्व ही जूते चप्पल त्यागना तो इष्ट है, साथ ही यदि पर्स, बेल्ट. फाइल इत्यादि चमड़े की अथवा अन्य अशुद्ध पदार्थ की बनी हो तो उसे मन्दिर के दरवाजे पर ही छोड़कर पश्चात् हाथ धोकर ही प्रांगण में प्रवेश करना चाहिये । मन्दिर का वातावरण शुद्ध रखना उपासक का कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व दोनों है। कचरा रखने का स्थान जिस तरह हम नियमित रुप से घर की सफाई करके कचरा बाहर निकालते हैं उसी भांति मन्देिर से भी नियमित रुप से सफाई करके कचरा निकालना आवश्यक है। मन्दिर में सफाई न रहने से मन्दिर की शुचिता एवं पवित्रता घटती है। पूजन आदि कार्य फलहीन हो जाते हैं। मन की स्थिरता भंग होती है। अतएव मन्दिर की नियमित सफाई अवश्य ही करना चाहिये। निकले हुए कचरे को इधर उधर न फेंककर निश्चित स्थान पर डालना चाहिये। कचरा रखने का पात्र पूर्व, ईशान एवं उत्तर में नहीं रखना चाहिये। न ही इसे मुख्य द्वार के समक्ष रखना चाहिये। कचरा पात्र नैऋत्य, पश्चिम या दक्षिणी भाग में रखना चाहिये। कचरा पात्र मन्दिर की दीवाल से सटाकर नहीं रखना चाहिये। इसी तरह कोयला, पत्थर आदि का ढेर भी मन्दिर दीवाल से सटाकर नहीं रखें।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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