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________________ (देव शिल्प ४0 स्नान गृह जिन मन्दिरों में नियमित दर्शन पूजन करना प्रत्येक गृहस्थ का नित्य कर्म होता है। प्रातःकालीन क्रियाओं से निवृत्त होने के उपरांत सर्वप्रथम जिनदेव का दर्शन पूजन करना चाहिये। पूजा करने के इच्छुक उपासक के लिये यह आवश्यक है कि वह धुले हुए शुद्ध वस्त्रों को पहनकर ही भगवान की पूजन, अभिषेकादि क्रिया सम्पन्न करे। पुरुष धोती-दुपट्टा पहनकर तथा स्त्रियां साड़ी पहनकर ही पूजाभिषेक क्रिया करें। पूजन करने के पूर्व गात्र शुद्धि ( देह शुद्धि) परमावश्यक है। अतएव यदि पूजक घर से स्नान करके मन्दिर आयेगा तो मार्ग में अशुद्धि होने की आशंका रहती है। अतएव यह उपयुक्त है कि उपासक मन्दिर परिसर में ही स्नान कर लेवे तथा वहीं पर धुले हुए शुद्ध वस्त्रों को धारण कर भक्ति भाव से जिनेन्द्र प्रभु का अभिषेक पूजन करे। स्नान गृह का निर्माण मन्दिर के पूर्व, उत्तर अथवा ईशान भाग में ही करना चाहिये। ये सम्भव न होने पर वायव्य में भी स्नान गृह बनाया जा सकता है। पूर्व की तरफ स्नान गृह बनाने से प्रातःकालीन सूर्य किरणों की ऊर्जा अनायास ही प्राप्त हो जाती है। स्नान गृह के जल का प्रवाह उत्तर अथवा ईशान में ही रचना उपयुक्त है। अन्य दिशाओं में जल प्रवाह रखना अनिष्टकारी होगा तथा स्नान शुचिता को गो निष्फल कर देगा। पूजन के लिए वस्त्र धारण करते समय पश्चिम / उत्तर की ओर मुख रखना चाहिये। आचार्य उमास्वामो के मतानुसार स्नान पूर्व दिशा की ओर मुख करके करें। दन्तधावन पश्चिम की ओर मुख करके करें। श्वेत वस्त्र परिधान उत्तर की ओर मुख करके करें तथा पूजन पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके करें।* पूजन सामग्री तैयार करने कास्थान ___ मंदिर में उपासकों के लिए पूजन सामग्री - जल , चन्दन ,अक्षत , पुष्प आदि द्रव्यों को धोकर थालियों में सजाया जाता है। दीप तथा धूपघट तैयार किये जाते हैं। ये कार्य मंदिर के ईशान भाग में करें। यह कार्य पूर्व अथवा उत्तर दिशा में भी कर सकते हैं । .. पूजन हेतु कपड़े बदलने का स्थान मंदिर में पूजा करने हेतु शुद्ध धुले हुए धोती-टुपट्टे अथवा महिलाओं को धुली शुद्ध साड़ी धारण करना आवश्यक है । यह कार्य भी ईशान, उत्तर अथवा पूर्व दिशा में करना चाहिए । वस्त्र धारण करते समय उत्तर की ओर मुख रखें ।* *स्नानं पूर्वमुखी भूव प्रतीच्यां दन्तधावनम् । उदीच्या श्वेत वस्त्राणि, पूजा पूर्वोतरामुरवी ।। उपास्वामी श्रावकाचार /२७
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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