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________________ देव शिल्प प्रणाली का मान एक हाथ की चौड़ाई के तुल्य मंदिर में जल निकलने की नालो की ऊँचाई चार जव अर्थात आधा अंगुल रखें। इसके उपरांत प्रत्येक हाथ पर चार-चार जय बढ़ाऐं । इस प्रकार ५० हाथ चौड़े मंदिर में नालो २०० जव के बराबर अर्थात २५ अगुंल रख्ने । * अप. सू. १२८ __ जगती की ऊँचाई में तथा मण्डोवर (भित्ति के छज्जे के ऊपर चारों दिशाओं में पानी की नाली बनायें। अभिषेक जल के उल्लंघनका निषेध जन जैसर दो- नारपसा में अमिक जल को अत्यंत पवित्र माना जाता है । इस जल का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। प्रतिमा के अभिषेक जल को या तो पात्र में एकत्र कर लिया जाना चाहिए अथवा इस जल को निकालने की नाली गुप्त रख-|| वाहिए। यदि इस जल का उल्लंघन किया जाएगा तो इससे पूर्व कृत पुण्य का क्षय होता है। शिव स्नानोटक के उल्लंघन रो परिहार के लिये इसे पहले चण्डगण के मुख पर गिराया जाता है। इसके उपरांत इस उच्छिष्ट जल का उल्लंघन करने पर दोष नहीं माना जाता। ** आरती एवं अखण्ड दीपक मंदिर में पूजा के अतिरिक्त आरती भी की जाती है। आरती के लिए धृत अथवा तेल का दोपक जलाया जाता है। आरती पीतल से निर्मित सुन्दर आरती स्टैण्डों में भी जलाई जाती है। मंदिर में वेदो के समक्ष भगवान की प्रतिमा के निकट आग्नेय दिशा में आरती रखना चाहिए। अनेकों स्थलों पर अखण्ड दीपक जलाने की परम्परा है। रो दीपक भी आग्नेय दिशा में रखने चाहिए । मंदिर के दाहिने भाग में दीपालय बनाना शुभ है तथा यश एवं सुख प्रदाता है, जबकि बांये भाग में दीपालय बनाना यश एवं सुख का हरण करता है। # ------------------------------ - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - *जलनालियाउ फरिसं करंतर चउजवा कमेणुस्त्वं । जठाई अभित्ति उदर Bउजइ समनजदेनेहिं पि।व.सा.३/५४ **शिवस्नानोदकं गढ़ मार्गे चण्डमुखें क्षिपेत् । दृष्टं न लंबोत्तत्र हन्ति पुप्यं पुराकृतम् । प्रा. म. २/३२ #टीपालयं प्रकर्तव्यं वाहस्य दक्षिणांताके। वापांगे तु न कर्तव्यं स्वामियशः सुखापहम् ।। शिर. ३/१23
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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