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देव शिल्प
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४. इसी प्रकार जलकुंभ लाते समय यदि कंधे से घड़ा गिर कर औंधा हो जाये तो समाज में उपद्रव होते हैं। यदि घड़ा फूट जाये तो श्रमिक की मृत्यु हो सकती है तथा यदि हाथ से घड़ा गिर जाये एवं फूट जाये तो प्रमुख व्यक्ति का अवसान हो सकता है। यदि विसर्जन के पूर्व ही घड़ा फूट जाये तो कीर्ति क्षय होता है।
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अन्ततः यह ध्यान रखें कि अशुभ लक्षणों का अभाव करके ही सूत्रारम्भ का कार्य करें। जो रेखा खींची जाये उसमें भी बायें से दायी ओर खींची जाये तो सम्पत्ति लाभ होता है किन्तु इसके विपरीत करने पर शत्रुभय होता है।
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विरूपा च दन्तेन चांगारेणास्थिनापि वा । न शिलाय भवेद्वेखा स्वामिनो परणं तथा ।। अपसव्यं क्रमे वैरं सव्वे सम्पदमादिशेत् । तस्मिन कर्म समारम्भे श्रुतंनिष्ठानितं तथा ॥ वाचस्तु परुषास्तत्र ये चान्ये शकुनाधामा: । तान् विव प्रकुर्वीत् वास्तु पूजन कर्मणि ।। सूत्रच्छेजे मृत्युः कीते चावांगपुखे महाजोगः । गृहनाथ स्वपति जां स्मृति लोपे मृत्युरादेश्यः ।। स्कन्धाच्युते शिरोसकुलोपसर्गोऽ५६र्जिते कुम्भः । भोपे च कर्मिदधच्युते कराद गृहपतेः मृत्युः ॥
कीर्तिवधः कुम्भे कुम्भस्योत्सव वर्जितः ।