________________
(देव शिल्प)
विचार
उत्तम स्थानों में
सर्वत्र
*
स्थान के अनुरूप आय
ग्राम, किला
वापिका, कूप, सरोवर
शय्या
सिंहासन
भोजनपात्र
छत्र, तोरण
नगर, प्रासाद,
सर्वगृह
मलेच्छ गृह
तापस मठ, कुटी
भोजनकक्ष
रसोई या लोहार आदि के गृह में
ब्राह्मण गृह
क्षत्रिय गृह
वैश्य गृह
देवालय
उपयुक्त आय ध्वज, सिंह, गज आय
ध्वज आय
गज, सिंह, वृष आय
गज आय
गज आय
सिंह आय
वृष आय
ध्वज आय
वृष, गज, सिंह आय
वृष, गज, सिंह आय
श्वान आय
ध्वांक्ष आय
धूम्र आय
धूम्र आय
ध्वज आय
सिंह आय
४०
वृष आय
साधु आश्रम
ध्यक्ष आय
यह अवश्य स्मरणीय है कि ध्वज आय सर्वत्र अनुकरणीय है अतएव यदि सभी जगह उपयुक्त आय की गणना स्थिर नहीं हो तो ध्वज आय का ग्रहण करना चाहिये ।
* व. सा. १ / ५३ से ५७