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________________ (देव शिल्प आय विचार संशोधन जिस वास्तु की चौड़ाई ३२ हाथ से अधिक हो उसमें विज्ञ जन आय का विचार नहीं करते । ग्यारह जब से ३२ हाथ तक विस्तार के वास्तु में ही आय का विचार किया जाता है। यदि उपयुक्त आय नहीं आ रही हो तो प्रमाण गाप में दो तीन अंगुल की वृद्धि या कमी करके उपयुक्त आय आये, इस प्रकार लम्बाई-चौड़ाई का समायोजन करना चाहिए। गणना करने के लिए लम्बाई चौड़ाई के माप को अंगुलों में परिवर्तित कर पश्चात आयादि की गणना करें। उदाहरणतः - लम्बाई चौड़ाई १९४ x १४७ : ८ ८ हाथ २ अ. - ८ × २४ + २ ६ हाथ ३ अं. = ६x२४ + ३ २८५१८ + ८ = ३५६४ शेष ६ शेष ६ अर्थात खर आय इसे ध्वज आय में बदलने के लिए लम्बाई एवं चौड़ाई में किंचित परिवर्तन करें। उदाहरण - ८ हाथ १ अं. लम्बाई चौड़ाई ६ हाथ १ अं. ध्वज आय सिंह आय वृष आय गज आय १९३१४५ + ८ = अर्थात् ध्वज आय. आय से द्वार विचार पूर्वादि चारों दिशाओं में द्वार पूर्व, उत्तर, दक्षिण दिशाओं में द्वार पूर्व दिशा में द्वार पूर्व एवं दक्षिण दिशाओं में द्वार आय से भित्ति विचार * गृह के आगे की दीवार बायें एवं दाहिने ओर पीछे की दीवार = १९३ अं. = १४५ अं. २७९८५ : ८ ३४९८ शेष १ * अग्रभित्तौ गजं दद्याद् वामदक्षिणयोर्ध्वजः । पृष्ठभित्तौ तथा सिंहं सुखसौभाग्यदायकाः ॥ ( शि. २. १ / ६८ ) = १९४ = १४७ : गज आय :- ध्वज आय सिंह आय : ३९ शुभ શુમ शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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