SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५ ] (देव शिल्प माप प्रकरण विभिन्न प्राचीन ग्रन्थों में माप का विवरण मिलता है। त्रिलोकसार ग्रन्थ में माप के दो भेद किये गये हैं। इन्हें लौकिक तथा अलौकिक मान के भेद से जाना जाता है। इनमें लौकेिन मान के पुनः छह भेद किये गये १. मान, २. उन्मान, ३. अवमान, ४. गणिमान, ५. प्रतिरान, ६.तत्प्रतिमान देवमन्दिर आदि के माप में गणमान का आश्रय लिया जाता है। तिलोय पत्ति में प्रमाण करने के लिये अंगुल आदि का माप उल्लेखित है। अंगुल के तीन भेद हैं- १.उत्सेधांगुल, २. प्रमाणांगुल, ३. आत्गांगुल नगर, उद्यान, निवास, मन्दिर, वारतु प्रकरणों में नाप का आधार आत्मांगुल रो किया जाता है। शास्त्रों में कहा है कि देवमन्दिर, राजप्रासाद, जलाशय, प्राकार, वस्त्र और भूमिका माप कम्बिा या गज रो करना चाहिये। गज का आधार अंगुल है। अंगुल के माप से योजन तक के माप तिलोय पाण्णत्ति में दिये गये हैं :कर्म भूमि के ८ बालों की १लीख कर्म भूमि के ८ लीखों की - १जूं कर्म भूमि के ८ जूं - १यव कर्म भूमि के ८ यव का कर्ग भूमि के ६ अंगुल का १पाद कर्म भूगि के २ पाद १ वितास्त कर्म भूमि के २ वितस्तेि १हाथ कर्म भूमि के २ हाथ १ रिकु कर्म भूमि के २ रिक्कु = ४ हाथ . १ दण्ड (धनुष्य) कर्म भूांगे के २००० धनुष १कोस कर्म भूमि के ४ कोरा १योजन कर्म भूमि के १० हाथ १ बांस कर्म भूमि के २० हाथ या ४ भुजा - १ निवर्तन (क्षेत्रफल का माप) गज का मान २४ अंगुल का होता है। गज का निर्माण चंदन, महुआ, खैर, बांस अथवा स्वर्ण, रजत, ताम्र आदि धातु से करना चाहिये। * * - १ अंगुल *कम्म महिए बालं लिवश्वं न जवं च अंगुल्यं। इणि उत्तरा या भणिया पुत्वेहि अगुणिदो हिं ।। ति.प. १/१०६ छह अंगुलेहिं पादो के पादोहि विहत्यि णामा या दोणि विहत्यि हत्यो बे हत्थेहि हवे रिक्छ ।। ति.प. १/११४ बैरिखे दण्डो दण्डसमाजुला एणि पुसतं वा। तरस तहा णाली वा दो दण्ड सहस्सयं कोस ।। ति.प. 1/११५ चउकोसे हिंजोयणं तं चिद वित्यार गत ममतदृ ।। . . . ति.प. १/११६ *"चतुर्विशत्युगलैस्तु हस्तमानं प्रचक्षते। चतुर्हस्तो भवेददण्हे ठहो कोशं तद् द्विसहस्त्रकम ।। चतुष्कोशं योजनं तु वंशो दशकरेर्मितः। जिदर्तन विशतिकरैः क्षेत्रं तच्च चतुष्कर : ।।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy