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________________ (देव शिल्प) ४ ईशान -श ] पूर्व - अ आग्नेय - क उत्तर - य मध्य हपय दक्षिण • च वायव्य - प|पश्चिम - तनैऋत्य -ट जाप्य मन्त्र ॐ हीं कूष्माण्डिनि कौंपारि मम हृदये ही काय काय स्वाहा।* शल्य स्थिति प्रश्नकर्ता का प्रथमाक्षर दिशा शल्य स्थिति फल पूर्व डेढ़ हाथ नीचे मनुष्य की हड्डी मनुष्य का मरण आग्नेय दो हाथ नीचे गधे की हड्डी राज दण्ड भय दक्षिण कमर भर के नीचे मनुष्य की हड्डी स्वामी मरण नैऋत्य डेढ़ हाथ नीचे कुत्ते की हड्डी गर्भपतन पश्चिम डेढ़ हाथ नीचे सियार की हड्डी परदेशवास बायव्य चार हाथ नौचे मनुष्य की हड्डी मित्रनाश उत्तर साढ़े चार हाथ नीचे गधे की हड्डी पशुनाश ईशा- डेढ़ हाथ नीचे गौ की हड्डी गोधन नाश हपय मध्य छाती जितना नीचे केश कपाल, मृत्यु मुर्दा, भरम, लोह शल्योद्धार करने के लिये निर्दिष्ट प्रक्रिया करने के उपरांत भी अनेकों बार खोदने पर हड्डी नहीं निकलती। ऐसी परिस्थिति में अपेक्षित स्थान को सावधानी से गहराई तक खोद लेना उपयुक्त है, क्योंकि दीर्धकाल के उपरांत हड्डी आदि वहाँ से जानवरों द्वारा निकाली भी जा सकती है। शल्योद्धार करने के पश्चात ही निर्माण कार्य प्रारंभ करना आवश्यक है। *०२/२ से २/२१ विश्वकर्मा प्रकाश *वास्तु रत्नावली २/२२-२३
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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