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________________ (देव शिल्प) ३३ ॐ ह्रीं श्रीं ऐं जपो वाग्वादिनी मम प्रश्ने अवतर अवतर' इस मन्त्र से खडिया (सफेद पाक) को १०८ बार मन्त्रित कर कुमारी कन्या के हाथ में देवें लथा कोई भी प्रश्नाक्षर लिखवायें लिखे अक्षर को कोष्ठक से मिलान करें । र्यादे मिल जाये तो उस भाग में शल्य रामझें । यदि अक्षर न मिले तो भूगि शल्य रहित समझें। प्रश्नाक्षर से शल्य मिलने का संकेत ब आये तो पूर्व दिशा में डेढ़ हाथ नीचे मनुष्य की हड्डी निर्माता की मृत्यु आग्नेय में दो हाथ नीचे गधे की हड्डी राज भय दक्षिण में कमर जितना गहरा मनुष्य की हड्डी निर्माता की मृत्यु नैऋत्य में डेढ़ हाथ नीचे कुत्ते की हड़ी बालकों को हानि (संतान सुख का अभाव) पश्चिम में दो हाथ नीचे बच्चे की हड्डी स्वामी का परदेश वास वायव्य में चार हाथ नीचे कोयले मित्रनाश उत्तर में कमर जितना गहरा विप्र की हड्डी स्वामी का धननाश ईशान में डेड हाथ नीचे गाय की हड्डी स्वामी का धन नाश मध्य में छाती जितना गहरा कपाल, केश, अतिसार स्वामी की मृत्यु BhaFठ निर्माता को चाहिये कि सर्वप्रथम शल्य शोधन करके ही वास्तु निर्माण का कार्य प्रारंभ करें। ऐसा न करने पर अनिष्टकारक घटनाएं होंगी तथा बाद में शल्य की उपस्थिति ज्ञात होने पर भी इसे निकालना असम्भव हो जायेगा। शल्य का निराकरण करने के लिए शकुन शास्त्रों में पृथक पृथक विधियां दी गई हैं किन्तु उपरोक्त विधि उपयुक्त एवं व्यवहारिक है। शल्य शोधन की द्वितीय विथि जिस भूमि पर वास्तु का निर्माण करना अभीष्ट है उस भूमि पर नव कोष्ठकों का एक चक्र निर्माण करें। उसमें पूर्वा दे दिशाओं से स, क, च, ट, त, प, य, श, इन वर्गों को लिखें। मध्य में ह प य लिखें। निम्न मन्त्र का इक्कीरा बार जाप कर कोष्ठक को अभिमंत्रित करायें तब प्रश्नकर्ता से प्रश्न करायें। जिस अक्षर से वह प्रश्नारम्भ करे वहां निर्दिष्ट शल्य होगी।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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