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________________ (देव शिल्प बातियों को णमोकार महामंत्र से मन्त्रित करें - ॐ णमो अरिहंताणं, णमो सिदाणं ,णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सध्य साणं, चत्तारि मंगलं, अरिहंत मंगलं, सिब्द मंगलं, साह मंगलं, केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं, चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंत लोगुत्तमा, सिब्द लोगुत्तमा, साह लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्पो लोगुत्तमा, चत्तारि सरणं पत्वज्जामि, अरिहंत सरणं पव्वज्जामि, सिब्द सरणं पच्वज्जामि, साह सरणं पवज्जामि, केवलि पण्णत्तं धम्म सरणं पव्वज्जापि, ह्रौं कुरु कुरु स्वाहा। इस मन्त्र से मंत्रित करके बातियों को जला देवें । यदि बातियां घी समाप्त होने तक जलती रहें तो उत्तम फलदायक समझें। यदि बतियां धी समाप्त होने के पूर्व ही बुझने लगे तो अधम फलदायक समझें। शल्य शोधन ___ जिस भूमि पर जिन मन्दिर का निर्माण किया जाना निश्चित किया गया है, उस शूमि के नोचे हड्डी, चमड़ा, बाल, कोयला आदि होना अत्यंत अनिष्टकारक है। इन्हें शल्य कहा जाता है। भूमि चयन एवं परीक्षण के उपरांत शल्य शोधन किया जाना आवश्यक है। शल्य युक्त भूमि पर निर्माण से समाज में विविध संकट, क्षति, संक्लेश, व्याधि होने की संभावना रहती है। शास्त्रों में उल्लेखित विधि के अनुसार शल्य शोधन करना चाहिये। शुभ दिन, शुभ नक्षत्र, तारा एवं चन्द्र जिस दिन अनुकूल हों, ऐसे दिन शुभ लग्न एवं शुभ मुहूर्त में शल्योद्धार करना चाहिये। शल्य शोधन की प्रथम विधि - जिस भूमि पर मन्दिर निर्माण करना है उसके नौ भाग करें। इन नौ भागों में पूर्व से प्रारंभ कर ब, क, च, त, ए, ह, स, प, ज लिखें। फिर आगे लिखें रूप में यन्त्र बनाएं। कुमारी कन्या को तिलक लगाकर श्रीफल देकर पूर्व मुखी बैठाएं। ईशान - प | पूर्व - ब आग्नेय - क उत्तर - स मध्य - ज दक्षिण - च वायव्य - ह |पांश्चग - ए नक्रिय - त
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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