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________________ (देव शिल्प ३१ भूमि परीक्षण विधियां मन्दिर निर्माण करने का निर्णय हो जाने के पश्चात उपयोगी भूमि का चयन किया जाता है। मि चयन के उपरांत विभिन्न विधियों से भूमि की परीक्षा की जाती है। परीक्षा के उपरांत ही उस पर जिन मन्दिर बनवाना चाहिये अन्यथा अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे वरन् विपरीत मिलेंगे। प्राचीन काल से प्रचलित भूमि परीक्षण विधियों में से किसी एक का अनुकरण करना चाहिये। यह स्मरण रखें कि समशीतोष्ण एवं शुष्क जलवायु के रहते ये परीक्षण करना चाहिये। यदि तत्काल या कुछ समय पूर्व वर्षा हुई हो तो ये परीक्षण नहीं करें। भूमि परीक्षण की ग्रथम विधि प्रस्तावित भूमि के बीच में चौबीरा अंगुल लम्बा, इतना ही चौड़ा तथा इतना ही गहरा एक गडढा खोदें। अब निकली हुई मिट्टी को पुनः उसी में भरें। यदि पूरा गढा भरने के उपरांत मिट्टी बच जाये तो वह भूमि उत्तम फलदायका है। यदि मिट्टी । बचे न कम पड़े तो भूमि को मध्यम फलदायक मानना चाहिये। यदि मिट्टी कम पड़ जाये तो वह जघन्य फलदायक है । यह भूमि अधम है । मन्दिर निर्माता को ऐसी भूमि पर मन्दिर निर्माण से दुख दारिद्रय का कष्ट भोगना पड़ेगा। * भूमि परीक्षण की द्वितीय विधि प्रर ताचित भूमि पर २४ अंगुल लम्बा, चौड़ा, गहरा गडढा खोदें। उसमें लबालब जल भरकर तुरन्त १०० कदम जाकर वापस लौटे। यदि दो अंगुल पानी सूखे तो मध्यम फलदायक है। याद तीन अंगुल पानी सूखे तो अधम अर्थात दुखदायक होगी। # भूमि परीक्षण की तृतीय विधि रांध्या समय जब कुछ अंधेरा होने तब थोड़ी भूमि के चारों ओर परधोटे की भांति चटाई को इस प्रकार बांधे कि हवा प्रवेश न हो। इरा जमीः। पर अब मंत्र ॐ हूं फट्' लिखें। इस मंत्र पर मिट्टी का एक कच्चा घड़ा रखें। उस पर कच्ची मिट्टी का दीपक घी से भरकर रखें । उसमें एक-एक बाती पूर्व में सफेद, पश्चिम में पीला, दक्षिण में लाल तथा उत्तर में सफेद लगायें। - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - *चउतीसंगुल भूपी वणेवि पूरिज पुण टि सा गत्तः। तेणेव मट्टियाए हीणाहेय सप फला णेया ।व. रा.१/३ 23अहसा भरिव जलेण य चरणसट गच्छमाण जासुसइ तिदुइठा अंगुल भूमी अहप मज्झम उत्तमाजाण ।। य.स. १/४
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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