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देव शिल्प
मलव्याप्त भूमि
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१५. भूमि के स्पर्श से यदि हाथ मलिन हो तथा धोने पर भी साफ न हों, तो ऐसी भूमि जिनालय निर्माण के लिये अशुभ है।
१६. विष्ठा, यमन, मल आदि गन्दे पदार्थों से युक्त बदबूदार भूमि अथवा इनके जैसी गंध वाली भूमि अशुभ है।
१७. मुर्दे या कपूर जैसी गन्ध यदि मिट्टी में आये तो यह अनिष्टकारक है भय, रोग तथा चिन्ता का कारण है। इन प्रकार की भूमि यदि रूप, रस, गन्ध, वर्ण में उपयुक्त भी हों तो भी जिनालय निर्माण के योग्य नहीं है।
धातु मिश्रित भूमि का शुभाशुभ कथन
जिस भूमि पर जिन मन्दिर निर्माण करना हो उस भूमि पर एक हाथ गहरा गड्ढा खोदें। नीचे की भूमि का अच्छी तरह अवलोकन करें। यदि भूमि में धातु कण दिखते हैं तो उनको अच्छी तरह से परखें। उनमें जिस धातु जैसे कण दिखें उनका फलाफल इस प्रकार है
१. यदि उस भूमि में स्वर्ण जैसे कण दिखें या वह भूगि स्वर्ण जैरो चमके तो मन्दिर निर्माता के लिये भूमि धनागम कारक होगी।
२. यदि ताम्र सदृश्य कण दिखें तो मन्दिर निर्माता को धन धान्य वृद्धि तथा समाज के लिये सर्व सुख कारक होगा।
३. यदि सिंदूर के जैसे कण दिखते हैं तो मन्दिर निर्माता का यश कीर्ति का हनन या नाश होगा। ४. यदि अभ्रक जैसे कण हों तो मन्दिर निर्माता को अग्निभय एवं रांताप कारक होगी।
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५. यदि उसमें कांच अथवा हड्डियों के कण हों तो वह भूमि मन्दिर के निर्माण के लिये सर्वथा अनुपयुक्त अशुभ एवं त्याज्य है।
६. यदि उसमें कोयले अथवा कोयले जैसे पत्थर के काले कण दिखाई देवें तो ऐसी भूमि पर मन्दिर निर्माण कराने से निर्माता को राजभय बना रहेगा तथा अकाल गरण का भय एवं निरन्तर चिन्ता व दुख होंगे।