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देव शिल्प)
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विभिन्न अशुभ लक्षणों से युक्त भूमि पर मन्दिर बनाने के विपरीत परिणाम
२.
दुर्गम भूमि पर मन्दिर न बनायें ।
२. हत्या, नरसंहार, बलि, बालकों को दफन करने के स्थान पर मन्दिर निर्माण शोककारक, मृत्युकारक तथा अत्यन्त दुखदायी होता है।
मन कहिस्तान, पशुअलि स्थल पर मन्दिर निर्माण से निरंतर कष्ट एवं वैमनस्य बना रहता है। विधवा, परित्यक्ता, नपुंसक जहां लम्बे समय से रहते हों अथवा जहां लम्बे समय से रुदन हो रहा हो ( शोकगृह), वहां मन्दिर बनाने से प्रगति अवरुद्ध हो जाती है।
मदिरालय, जुआघर अथवा अन्य व्यसनों के गृहों के समीप मन्दिर निर्माण से धन एवं प्रतिष्ठा का नाश होला है ।
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कंटीले वृक्षों से निरंतर बिंधी रहने वाली भूमि, जहां काटने पर भी कंटीले वृक्ष निस्तर आ जाते हैं, मन्दिर निर्माण के लिये अनुपयुक्त है। यह क्लेशकारक तथा शत्रुवर्धक है ।
लगातार तापसियों का निवास रहकर उजाड़ हुई भूमि पर मन्दिर निर्माण से गांव उजाड़ हो जाते हैं। शीलहरणादि पापों से दूषित भूमि पर गन्दिर निर्माण करने से स्त्रियों का शील भंग होने का भय होता है। यदि भूमि के निकट लगभग १०० मीटर की दूरी पर शवदाह गृह हो तो वहां पर बना मन्दिर दुखदायक हो जाता है। यह भूमि अत्यन्त अशुभ है।
५०. जिस भूमि पर दीर्घकाल तक गर्दभ, शूकर, कौए रहते हों वहां पर मन्दिर निर्माण से अत्यंत क्लेश होता है।
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११. कौए, कबूतर, जिस स्थान पर निरन्तर रहते हों वहां पर मन्दिर निर्माण रो रोग, शोक, भय, मृत्यु, आदि कष्ट होते हैं।
१२. गिद्ध पक्षियों के निवास से युक्त भूमि पर मन्दिर निर्माण से निर्माता की धन हानि तथा मृत्यु हो सकती
है ।
१३. टेढी-मेढी, रेतीली विकट भूमि पर जिनालय निर्माण से विकट स्वभावी विद्या हीन पुत्र होते हैं।
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१४. नुकीली एवं पथरीली भूमि पर मन्दिर निर्माण से दरिद्रता बढती है।
टेढ़ी-मेढ़ी, रेतीली विकट भूमि
मुलीली एवं पथरीली भूमि