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(देव शिल्प
(४४४)
४४४
तीर्थकर वासुपूल्य
___ रत्नसंजयप्रासाद इसका निर्माण वासुपूज्य जिन वल्लभ प्रासाद के पूर्वोता मान से करें तथा उसमें कोण के क्रम के ऊपर ५ तिलका चढ़ावें।
श्रृंग संख्या पूर्ववत् २५७
तिल्क संख्या कोण पर ४ दोनों नन्दी पर १६
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कुल
२५७
कुल
२०
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धर्मदप्रासाद इराका निर्माण रत्न संजय प्रासाद के पूर्वोक्त मान रो करें तथा उसमें भद्र के ऊपर चौथा एक अधिक उरूश्रृंग चढ़ावें।
तिलक संख्या कोण पर दोनों नदी पर १६
श्रृंग संख्या कोण १०८ प्रतिरथ
११२ कोणी नन्दी भद्र १६ प्रत्यंग शिखर
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कुल
२६१
कुल .