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________________ (देव शिल्प ४३६ तीर्थकर सुपावं नाथ सुपार्श्वजिनवल्लभप्रासाद রক্ত ক্লা যিমুলা प्रासाद की तर्गाकार भूमि के १० भाग करें। उसम कोण २ भाग प्रतिकर्ण १.१/२ भाग करें तथा ये दोनों अंग वर्गाकार निकलते हुये हों। भद्रा १,१/२ भाग करें तथा उसके दोनों पार्श्व में भद्र के मान की दो कपिला बनायें। भद्र का निकलता भाग एक भाग रखें। शिखर की सन्ना कोणों के ऊपर क्रम चढ़ावें; प्रतिकर्ण के ऊपर उद्गग बगायें; भद्र के ऊपर उद्गम बनायें । श्रृंग संख्या कोग ५६ शिखर १ - - - - - - - - - - - - - - कुल ५७ क DARA श्री वल्लभप्रासाद इसका निर्माण सुपार्श्व जिन प्रासाद के उपरोक्त मान से करें तथा उसमें प्रतिकर्ण के ऊपर १-१ श्रृंग तथा मद्र के ऊपर १-१ उरुश्रृंग चढ़ायें श्रृंग संख्या को प्रतिकणं ८ भद्र शिखर - - - - - - - - - - - -- - - - - - - कुल ६९ सुपाय जिन बल्लभ प्रासाद
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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