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(४२९)
(देव शिल्प तीर्थकर संभव नाथ
स्वयंभू प्रासाद
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রত্র ফ্লা বিষ प्रारको वर्गाकार यूमि के १८ ना करें। कार्ग
२ भाग कोकि
१भाग प्रतिरक्ष
भाग नंदिका
१माग भट्राई
३भाग इसी प्रकार चारों पाश्वों में रचा करें।
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का प्रतिकणं कां का
शिखर की सजा २ क्र केशरी एवं श्री र! चढ़ाएं १ क्रम केशरी एवं श्रीग्रा चढ़ाएं श्रृंग चला
श्रृंग चढ़ाएं उरु श्रृंग चढ़ायें
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कुल अण्डा) ११३
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अमृतोदभव प्रासाद इस प्रासादका निर्माण करते समय तल और स्वरूप रू। कोटि प्राप की तरह ही करें। कोपा एवं प्रतिरक्ष के ऊपर एक तिलक वाद श्रृंग संख्या
तिलक संख्या २०९ पूर्ववत्
कोण पर - प्रतिकर्ण पर ८
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कुल २०९