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(देव शिल्प
जिन मंदिरों में मंडपक्रम
सभी प्रकार के मन्दिरों में मण्डप क्रम का ध्यान अवश्य रखें -
___ जिनेन्द्र प्रभु के आलय में गर्भगृह के आगे गूढमंडप का निर्माण करें। फिर नौ चौकी मण्डप बनायें । इराके आगे रंगमण्डप (नृत्य मण्डप ) बनायें। इनके आगे बलाणक (दरवाजे के ऊपर का मण्डप) बनायें।*
वत्थु सार में छह चौकी बनाने के लिए निर्देश है ।*
अतः मण्डपों का क्रम यही रखें । गर्भगृह के बायें और दाहिने भाग में शोभामण्डप तथा झरोखेदार शाला बनायें जिसमें नृत्य करते हुए गंधर्व हों। #
चौबीस तीर्थंकरों के लिए मन्दिर की रचना
प्रासाद की वर्गाकार भूमि के तीला अथवा निर्दिष्ट कोण, प्रतिर, जगर, गार्ध बनायें । इनका प्रमाण प्रत्येक तीर्थकर के साथ अलग-अलग निर्देशित है शिखर में श्रृंग समूह क्रम चढ़ाएं।
जिन मंदिरों में तीर्थंकर प्रतिमा के साथ पूरा परिकर बनाना चाहिए । इसका विवरण प्रतिमा प्रकरण में पठनीय है। बिना परिकर के तीर्थकर प्रतिमा कदापि ना बनायें । परम्परानुसार यक्ष-यक्षिणी एवं क्षेत्रपाल, सरस्वती देवी की भी प्रतिमाएं जिन मंदिर में लगाना चाहिए। इनका विवरण इसी ग्रंथ में प्रकरणानुसार दृष्टव्य है।
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*त्रिकस्तथा नृत्य पेण पण्डपास्त्रयः । जिनस्वाशे प्रकर्तव्यः सर्वेषां तु बलाणकम् ।। प्रा.म.७/३ **पासादकमल गृढव्रख्यमंडदं तओ छक्कं। पुण खगमंड तह तोरणासबलाणपंडवयं ।। व. सा. ३/४९ #दाहिण्वामदिसेर सोहमंडपाववजुअाला। गीदं नट्टविणोयं गंधवा जत्थ पकणंति ॥व.सा. ३/५० .